दिसम्बर १७, २०१८
भारतमें स्वास्थ्य सेवाओंकी स्थिति किसीसे छिपी नहीं है । अब विश्व स्वास्थ्य संगठनके एक विवरणने भी भारतमें चिकित्सा सुविधाओंपर प्रश्न किए हैं ! डब्ल्यूएचओके इस विवरणमें कहा गया है कि आधे भारतीयोंको आवश्यक स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध नहीं हैं ! वहीं स्वास्थ्य सेवाओंका लाभ उठाने वाले लोग भी अपनी आयका १० प्रतिशत से अधिक भाग चिकित्सापर व्यय कर देते हैं !!
डब्ल्यूएचओने यह सब ‘विश्व स्वास्थ्य सांख्यिकी-२०१८’के विवरणमें किया है । विवरणमें कहा गया है कि भारतीय जनसंख्याके १७ प्रतिशल लोगोंको वर्ष २००७ से २०१५ के मध्य चिकित्सापर अपनी आयका १० प्रतिशतसे अधिक भाग व्यय करना पडा था ।
डब्ल्यूएचओके विवरणमें बताया गया है कि भारतमें चिकित्सापर व्यय करने वाले रोगियोंकी संख्या ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनीकी कुल जनसंख्यासे भी अधिक है ! भारतके अतिरिक्त श्रीलंकामें २.९, ब्रिटेनमें १.६, अमेरिकामें ४.८ और चीनमें १७.७ प्रतिशत लोग अपनी चिकित्सापर आयका १० प्रतिशतसे अधिक भाग व्यय करते हैं । वहीं १७ प्रतिशत भारतीय अपनी चिकित्सापर आयका १० प्रतिशत भाग व्यय कर देते हैं ।
डब्ल्यूएचओके विवरणमें कहा गया है कि भारतमें बहुतसे लोग अभी भी उन रोगोंसे मर रहे हैं, जिनकी सरलतासे चिकित्सा की जा सकती है । बहुतसे लोग आयका बडा भाग या आयसे अधिक चिकित्सापर व्यय करनेके कारणसे गरीबीमें धकेले जा रहे हैं । यही कारण है कि भारतमें बहुतसे लोग स्वास्थ्य सेवाओंको पानेमें भी असमर्थ हैं । ये लोग छोटी-छोटी रोगोंकी चिकित्सा न करा पानेके कारणसे ही मर जाते हैं । ये स्थिति चिंताजनक है ।
डब्ल्यूएचओके विवरणमें आगे बताया गया है कि देशकी ३.९ प्रतिशत जनसंख्या या ५.१ कोटि भारतीय, घरेलू आयका एक चौथाईसे अधिक भाग चिकित्सापर व्यय करते हैं !
“जो राष्ट्र अपने प्रचीन विज्ञान, धरोहरको भूल किसी अन्यके अधपके ज्ञानको अपनाकर अपने पूर्वजोंका अपमान करता है, उसकी यह स्थिति होनी निश्चित है ! स्वतन्त्रता पश्चात भी आयुर्वेदपर न कोई अनुसन्धान किया गया, न ही बढावा दिया गया अर्थात लाखों वर्ष प्राचीन अथर्ववेदके भाग उस विज्ञानको छोड कुछ वर्ष प्राचीन रासायनिक प्रक्रियाओंपर आधारित ज्ञानको अपनाया गया, तो ऐसी स्थिति होना साधारण है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : जागरण
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