प्रेरक कथा – जब तक दु:ख नहीं मिलते, प्रभुको स्मरण नहीं करते !


एक दिन किसी निर्माणके मध्य भवनके छठे तलसे निर्माण वरिष्ठ निरीक्षकने (सुपर वाईजरने) नीचे कार्य करने वाले श्रमिकको पुकारा ।
निर्माण कार्यकी तीव्र ध्वनिके कारण नीचे कार्य करनेवाला श्रमिक कुछ समझ नहीं सका कि उसका निरीक्षक उसे बुला रहा है ।
तब निरीक्षकने उसका ध्यान आकर्षित करनेके लिए एक १० रुपएका ‘नोट’ नीचे फेंका, जो ठीक श्रमिकके सामने जाकर गिरा ।
श्रमिकने ‘नोट’ उठाया और अपने पास रख लिया और पुन: अपने कार्यमें लग गया ।
अब उसका ध्यान आकर्षित करनेके लिए निरीक्षकने पुन: एक ५०० रुपएका ‘नोट’ नीचे फेंका ।
उस श्रमिकने पुनः वही किया और ‘नोट’ अपने पास रखकर अपने कार्यमें लग गया ।
ये देख अब निरीक्षकने एक छोटा सा पत्थरका टुकडा लिया और श्रमिकके उपर फेंका जो सीधा श्रमिकके सिरपर लगा ।
अब श्रमिकने ऊपर देखा और उसका वरिष्ठ निरीक्षकसे वार्तालाप आरम्भ हो गया ।
ये वैसा ही है जैसा हमारे जीवनमें होता है ।
भगवान हमसे सम्पर्क करना, मिलना चाहते हैं; परन्तु हम पारिवारिक कार्योंमें व्यस्त रहते हैं; अत: भगवानको स्मरण नहीं करते ।
भगवान हमें और भी सुख रूपी उपहार भेजते हैं; परन्तु उसे भी हम हमारा भाग्य समझकर रख लेते हैं, भगवानको कृतज्ञता व्यक्त नहीं करते, उन्हें भूल जाते हैं ।
तब भगवान हमपर एक छोटासा पत्थर फेंकते है, जिसे हम कठिनाई कहते है और तुरन्त उसके निराकरणके लिए भगवानकी ओर देखते हैं, स्मरण करते हैं ।
यही हमारे जीवनमें हो रहा है यदि हम हमारी छोटीसे छोटी प्रसन्नता भी भगवानजीके साथ उनकी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए बांटे, तो हमें भगवानके द्वारा फेंके हुए पत्थरकी प्रतीक्षा ही नहीं करनी पडेगी ।


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