जैविक खेती (Organic farming) (भाग-१)


आनेवाले आपातकालको ध्यानमें रखकर हम यह नूतन लेखमाला आरम्भ कर रहे हैं । इसे पढकर आप भी अपने घरकी ‘बालकनी’, छतपर कुण्डीमें (गमलेमें) या अन्य उपलब्ध संसाधनोंमें या आंगनमें या आपके पास भूमि हो तो उसमें भी सीखकर जैविक खेती आरम्भ कर सकते हैं, यही इस लेखमालाको प्रकाशित करनेका हमारा एकमात्र उद्देश्य है ।
सम्पूर्ण विश्वमें बढती हुई जनसंख्या एक गम्भीर समस्या है, इसके साथ भोजनकी आपूर्तिके लिए विदेशोंमें खाद्य उत्पादनको अधिकसे अधिक बढानेकी होडमें भिन्न प्रकारके रासायनिक उर्वरकों (खादों), विषैले कीटनाशकोंका उपयोग प्रकृतिके तन्त्रको (Ecology System) प्रभावित करता है, जिससे भूमिकी उर्वरा शक्ति नष्ट हो जाती है, साथ ही वातावरण प्रदूषित होता है तथा मनुष्यके स्वास्थ्यमें गिरावट आती है । दुःखकी बात यह है कि भारतके किसानोंने भी एक बहुत ही उन्नत गौ आधारित कृषि एवं प्रकृतिमें सहज उपलब्ध संसाधनोंसे जैविक खेतीकी पद्धतिको त्यागकर विदेशी खेतीको अपनाकर इस देशको अत्यधिक हानि पहुंचाई है ।अच्छी बात यह है कि इस क्षेत्रमें पुनः एक जाग्रति समाजमें निर्माण हुई है; किन्तु इसे आज सर्वत्र प्रसारित करनेकी आवश्यकता है ।
जैविक खेतीको सीखना इसलिए भी आवश्यक है; क्योंकि आज समाज तो रसायनयुक्त खेतीसे उपजे उत्पाद खाकर रोगी बन ही रहा है, इसके साथ ही गोमाताका महत्त्व भी कम होता जा रहा है। जैविक खेती और गोमाताका सीधा सम्बन्ध कैसे हैं ?, यह भी आपको इस लेखमालामें बताएंगे ।

सर्वप्रथम जैविक खेतीकी परिभाषा समझ लेते हैं।
जैविक खेती, कृषिकी वह विधि है जो संश्लेषित उर्वरकों एवं संश्लेषित कीटनाशकोंके अप्रयोग या न्यूनतम प्रयोगपर आधारित है तथा जो भूमिकी उर्वरा शक्तिको बनाए रखनेके लिए फसल चक्र, प्राकृतिक उर्वरक (खाद), कम्पोस्ट आदिका प्रयोग करती है ।
जैविक खेती प्रकृतिके साथ सामंजस्य बनाकर चलती है । इसके लिए जिस तकनीकका प्रयोग किया जाता है, वह अच्छी उपज देनेके साथ ही प्रकृति और उसमें रहनवाले लोगोंको कोई हानि नहीं पहुंचाती है ।

जैविक खेतीमें प्रयोगकी जानेवाली प्रक्रिया निम्नलिखित है :-
* मृदाकी संरचना और उर्वरकताको बनाए रखने तथा उसे बढानेके लिए खेतके उपजके कचरे और पशु खादका पुनर्नवीनीकरण करना

* खेतोंकी योग्य समयपर जुताई करना और उसके लिए पारम्परिक पद्धति

* उपजका चक्रीकरण

* हरी खाद और फलियां

* मिट्टीकी सतहपर पालवार डालना

* कीटों, रोगों और मातमको रोकने हेतु प्रतिरोधी फसलोंका उपयोग

* योग्य फसलका चुनाव करना

* कीट खानेवाले जीवोंको बढाना

* अनुवांशिक विविधताको बढाना

* प्राकृतिक कीटनाशकोंका उपयोग



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