भारत कृषि प्रधान देश है, यहां अधिकांश जनसंख्या गांवोंमें निवास करती है और ६० से ६५ प्रतिशतसे अधिक लोगोंकी जीविकोपार्जनका माध्यम खेती ही है । दिन-प्रतिदिन जनसंख्या वृद्धिके साथ-साथ खाद्यानोंकी मांग भी बढ रही है, अधिकाधिक उत्पादनकी होडमें रसायनिक उर्वरकों, फसलमें होनेवाले रोगके निवारण हेतु कीटनाशकोंका कृषिमें उपयोग बढता जा रहा है । अज्ञानतावश इस देशके किसान देशी और परम्परागत उर्वरकोंको (खादोंको) अनुपयोगी समझकर उनके प्रति उपेक्षा करने लगे हैं । परिणामस्वरूप उर्वरकों तथा कृषि रसायनोंके अन्धाधुन्ध अविवेकपूर्ण और अनियमित प्रयोगसे भूमिकी उर्वरा शक्ति, भूमिगत जल व पर्यावरणपर विपरीत प्रभाव पड रहा है और इस कृषिका गोवंशसे अधिक सम्बन्ध न होनेके कारण इस देशके गोवंशकी दशा दिन-प्रतिदिन दयनीय होती जा रही है ।
साठके दशकमें हमारे देशमें तथाकथित हरित क्रान्तिके मध्य फसलोत्पादनमें रासायनिक उर्वरकोंका बहुतायतमें उपयोग प्रारम्भ हुआ । हरित क्रान्तिके तात्कालिक परिणामों ‘मशीनीकरण’ और रासायनिक खेतीसे जितना आर्थिक लाभ किसानोंको मिला उससे कहीं अधिक किसानोंने खोया है। प्रारम्भमें रासायनिक उर्वरकोंके फसलोत्पादनमें चमत्कारिक परिणाम मिले; किन्तु कालान्तरमें इसके दुष्परिणाम स्पष्ट दिखाई देने लगे, जैसे- उत्पादनमें कमी, जल स्रोतमें कमी, उत्पादन लागतमें बढोतरी, पर्यावरण प्रदूषणमें वृद्धि, समाजका रसायन युक्त कृषि उत्पादको खानेके कारण उसका रोगी होना ।
ऑर्गेनिक या जैविक खेती एक परम्परागत परिपूर्ण उत्पादन प्रक्रिया है । यह पर्यावरणको स्वस्थ्य बनानेके साथ ही उच्च और स्वच्छ गुणवत्तावाले भोजनके उत्पादनमें सहायक है। जैविक या ऑर्गेनिक पद्धतिमें जो आधारित कृषिको बढावा देते हुए निसर्गमें उपलब्ध वस्तुओंका एवं गोवंशसे प्राप्त वस्तुओंका उपयोग करना एवं उपयोग रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकोंका उपयोग वर्जित है ।
ऑर्गेनिक या जैविक खेतीको प्राकृतिक खेती, कार्बनिक खेती तथा रसायनविहीन खेती आदिसे भी जाना जाता है । इसका उद्देश्य इस प्रकारसे फसल उगाना है कि मिट्टी जल और वायुको प्रदूषित किए बिना दीर्घकालीन व स्थिर उत्पादन लिया जा सके ।
वस्तुतः ऑर्गेनिक या जैविक खेती कृषिकी वह पद्धति है, जिसमें स्वच्छ प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखते हुए, मृदा, जल एवं वायुको दूषित किए बिना दीर्घकालीन और स्थिर उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं । इसमें मिट्टीको एक जीवित माध्यम माना जाता है, जिसमें सूक्ष्म जीवों जैसे – रायजोवियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पाइरियम, माइकोराइजा एवं अन्य जीव जो मिट्टीमें उपस्थित रहते हैं एवं इनकी क्रियाओंको बढाने और दोहन करनेके लिए कार्बनिक तथा प्राकृतिक खादों एवं कीटनाशकोंका गहन उपयोग किया जाता है ।
ऑर्गेनिक खेतीद्वारा उत्पादित खाद्यानोंकी मांग तीव्रतासे बढ रही है । यद्यपि ये खाद्यान्न प्रदूषकोंसे मुक्त होते हैं; इसलिए भविष्यमें आजका रोगी समाज इसीका अवलम्बन करेगा इसके स्पष्ट संकेत दिखाई देने लगे हैं ।
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