जालन्धरकी (पंजाब) श्रीमती रिम्पल गुप्तकी अनुभूतियां,


१. श्री गुरुदेव दत्त जप करनेपर आरतीकी ध्वनि अपने आप सुनाई देना

वैदिक उपासना पीठसे जुडनेपर जब मैंने ‘श्री गुरुदेव दत्त’का जप आरम्भ किया तो जप अखण्ड होता था । नींदमें भी जप होता था । एक दिन सवेरे तीनसे चार बजेके मध्यका समय था, मुझे अकस्मात मन्दिरकी घण्टियां बजनेका स्वर सुनाई देने लगा ।तब शरद ऋतु थी । मेरी नींद पूरी खुल चुकी थी तब भी ध्वनि बहुत स्पष्ट सुनाई दे रही थी । मैं सोचने लगी कि इतने सवेरे मन्दिरमें आरती होने लगी क्या ? यह जाननेके लिए मैं शौचालय गई; क्योंकि उसका वातायन (खिडकी) बाहरकी ओर खुलती थी तो मन्दिरकी आरती स्पष्ट सुनाई देती थी; परन्तु बाहर सब ओर सन्नाटा था । किसी वाहनके निकलनेकी भी ध्वनि नहींथी । वापस आई, बिछावनपर बैठी, आंखें बन्द करते ही पुनः घण्टियां सुनाई दीं । उसके पश्चात मैं नामजप करते सो गई । थोडे दिनों उपरान्त तनुजा मांका सत्संग आया जिसमें उन्होंने पञ्च तत्त्वसे सम्बन्धित अनुभूतियोंके विषयमें बताया था; उसे सुननेपर मुझे समझमें आया कि वह आकाश तत्त्वसे सम्बन्धित अनुभूति थी और उनके प्रति  कृतज्ञताका भाव आया ।

२. किसी और माध्यमसे मांने मेरी जिज्ञासा शान्त की

एक बार मांके सत्संगमें ‘कुण्डलिनी’ शब्द सुना तो जिज्ञासा हुई कि इसके विषयमें और जानना है । तब मैंने वैदिक उपासना पीठके आश्रमके चलभाषपर सन्देश भेजा कि मां आप इसके विषयमें और बतानेकी कृपा करें; परन्तु बहुत दिनोंतक कोई उत्तर नहीं आया । इसी मध्य मेरी बहन मीनू गुप्तने मुझे एक ऐसे व्हाट्सऐप्प गुटके साथ जोड दिया । जो सनातन संस्थाके साधकोंका था । उसमें परम पूज्य गुरुदेवजीके लेख आते थे । एक दिन मैं लेख पढते-पढते ‘लिंक’पर जाती गई । वहीं एक लिंकपर मुझे कुण्डलिनीके बारेमें बहुत सी जानकारियां मिलीं । जिन्हें पढकर जिज्ञासा शान्त हुई व मांके चरणोंमें भावाश्रुके साथ कृतज्ञता व्यक्त की; क्योंकि इससे यह सिद्ध हुआ था कि गुरु किसी भी माध्यमसे शिक्षा दे सकते हैं ।

३. नामजपसे छोटी-छोटी इच्छाएं भी होने लगीं पूरी

ऐसे ही घरमें बहुत सी छोटी छोटी अनुभूतियां होती रही । मनमें कोई भी विचार आता । उत्तर अगले ही सत्संगमें  मिल जाता था । कुछ चाहिए होता थातो मनसे ऐसे ही प्रार्थना हो जाती और वस्तु हमतक पहुंच जाती । ऐसी ही एक बहुत छोटी अनुभूति है । शीतकाल था । पंजाबमें ‘साग’ बहुत बनता है । पति साग ले आए; परन्तु पालक नहीं लाए और उन्हें बार-बार कहनेपर भी नहीं लाए तो चिन्ता हुई कि यदि सन्ध्या समयमें उबालकर नहीं रखा तो दूसरे दिन सवेरे बहुत कार्य बढ जाएगा। पालकके बिना उबाल नहीं सकती थी । इसी चिन्तामें प्रार्थना हुई कि हे भगवान ! कहींसे पालक मिल जाता तो अच्छा होता ! रात्रिमें पति ‘दुकान’से लगभग दस बजे आए तो उनके हाथमें थैला था जिसमें पालक और मेथी थी ।देखकर बहुत प्रसन्नता हुई उनसे पूछा कि आपको यह लाना स्मरण रहा ? तो उन्होंने कहा, “मैं नहीं लाया, ‘दुकान’पर कोई छोड गया तो घर ले आया कि गल जाएगी । देवरानीको उपयोगमें लानेसे शंका हो रही थी; परन्तु मुझे कोई शंका नहींथी । मुझे विश्वास था कि यह गुरुकृपा ही है तब मनसे कृतज्ञताका भाव बार-बार आया ।

४.श्री गुरुदेव दत्त जप आरम्भ करनेपर हुआ तीव्र कष्ट, जो कुछ समय पश्चात जप करते रहनेसे हो गया न्यून

‘जागृत भव’ व्हाट्सऐप्प गुटसे जुडनेसे पहले ही मांके सत्संग यू-ट्यूबसे सुनकर दत्तात्रेय देवका जप आरम्भ कर दिया था । मेरा जप अखण्ड होने लगा । सिरमें तीव्र वेदना होती, शरीरमें अत्यधिक कम्पन होता । इतना कि मुझे मध्यमें शान्ति पाठकर जलग्रहण करना पडता । हर समय मैं क्रोधमें रहती । कोई कुछ भी कहता तो तीव्र प्रतिक्रिया आती थी ।इसी कारण घरमें कई बार कलह-क्लेश भी हो जाता; किन्तु नामजप करते-करते सब ठीक होने लगा ।

५. मेरे शरीरसे किसी और लिंगदेहद्वारा प्रातः स्मरणीय श्लोक बोलना

एक दिवस प्रातः पांच बजेके आसपास उठकर गणपति वन्दना, भूमि वन्दना आदि किया । मुझे लगा कि मैंजाग गई हूं ! सब मन्त्र मैंने बोले (मनमें बोलती हूं कि पतिकी नींद खुल जाएगी) जब पैर भूमिपर रखने लगी तो देखा मैं तो बिछावनपर लेटी हूं । जब यह आभास हुआ तो मैंनेअच्छेसे हाथसे बिछावनको छुआ; किन्तु मैं बिछावनपर ही थी तो डर लगा कि अभी कौन उठा था ? किसने सारे श्लोक बोले ? तब बहुत भय लगा और मैं शीघ्रतासे उठ गई । (आपके शरीरमें वास करनेवाली सूक्ष्म लिंगदेहने ऐसा किया)

६. स्वप्नमें हुई एक विचित्र एवं भयभीत करनेवाली अनुभूति

एक रात मैं स्वप्नमें कहींसे आ रही थी तो आते-आते लगा मैं उड रही हूं ।मैंने सोचा तीव्र गतिसे  चलनेके कारण ऐसा लग रहा है; परन्तु थोडी ही देरमें घरके पास पहुंचते ही ऐसा लगा किसीने मुझे अकस्मातसे ऊपर खींच लिया । मैं वायुमें बहुत ऊंचे जा रही थी । घर बहुत छोटा दिखने लगा मैं बहुत भयभीत हो गई, मेरे मुखसे निकला, “मेरा घर, मेरे बच्चे !” तभी मेरी नींद खुल गई । स्वप्न इतना स्पष्ट था कि अभीतक पूरा स्मरण है । (आपके देहमें कोई पूर्वज थे जिन्हें गति मिल गई; किन्तु वह आपके मन एवं बुद्धिसे भी कुछ सीमातक एकरूप थे; इसलिए आपको लगा कि आप वायुमें ऊपर जा रही हैं । – सम्पादक)

७. मांने मेरे मनोभावको जानते हुए मेरे नामकी वर्तनी कैसे होनी चाहिए ? यह स्वतः ही बिना पूछे बताया

पहले मुझे अपना नाम बहुत अच्छा लगता था; क्योंकि जिसे भी बताती थी, उसे अनसुना सा ही लगता था; परन्तु जैसे मांके सत्संग व लेख पढने लगी तो मुझे अपना नाम अच्छा नहीं लगने लगा । ऐसा लगता था कि इस नामसे अच्छे स्पन्दन नहीं आते हैं; क्योंकि वह अंग्रेजीमें है । इसलिए मैं नाम कभी कैसे तो कभी कैसे लिखती थी । थोडे दिन पहले ही मनमें विचार आया कि कितना अच्छा होता यदि मां मुझे बता दें कि मेरा नाम अच्छा है या नहीं; परन्तु पूछनेका साहस नहीं हुआ । एक तो यह व्यक्तिगत प्रश्न था, दूसरा मांका स्वास्थ्य ठीक न होनेसे ऐसे प्रश्न पूछकर उन्हें कष्ट नहीं देना चाहती थी । आज जबमांने उपासनाके क्रियाशील साधकोंके व्हाट्सऐप्प गुटमें बताया कि मैं नाम कैसे लिखूं ? तो पहले तो विश्वास नहीं हुआ कि मेरे मनकी बात मांतक कैसे पहुंच गई ? इसके पश्चात मन कृतज्ञतासे भर गया कि मांने कृपा दृष्टि रखते हुए मुझे यह प्रसाद दिया है । (२१.७.२०१८)

८. सेवाके मध्य ईश्वरने अडचन दूर की

आज मुझे सेवा भेजनी थी । मैं तत्परतासे सब कार्य करके सेवा करने बैठ गई ।थोडी ही देरमें वर्षाकी छोटी बूंदें आने लगीं । देवरानीने बोला कि आप कपडे छतसे नीचे ले आएं, वर्षा आ रही है । यह सुनकर मुझे बहुत चिढ हुई कि अब मेरा समय व्यर्थ हो जाएगा । मेरे मनसे प्रार्थना हुई कि भगवन ! मैं सेवा कर रही हूं और कपडे लेने नहीं जा सकती । अब आप ही कुछ करें और आश्चर्यकी बात वर्षा रुक गई औरधूप भी आ गई । सेवा भेजनेके बहुत समय उपरान्त जब सब कपडे सूख गए तब मैं वे छतसे लाई । तभी अनायास बहुत तीव्र वर्षा होने लगी । ऐसा लगा कि भगवानने केवल मेरे लिए ही वर्षा रोक रखी थी । यह देखकर मांके शब्द कानमें गूंजने लगे कि सेवामें लगे साधकका योगक्षेम स्वयं भगवान वहन करते हैं । ( २३.७.१८) (परन्तु ऐसी प्रार्थना नहीं करनी चाहिए इससे साधना व्यय होती है – सम्पादक)

९. सेवा करनेसे पूर्व प्रार्थना न करनेसे धारिकामें कुछ भी संरक्षित न होना

आज सवेरे सेवा करनेसे पूर्व बेटा संगणकपर (कंप्यूटरपर) कुछ कार्य कर रहा था । उसका कार्य समाप्त होनेपर उसने खुला संगणक ही मुझे दे दिया और कहा कि आप अब सेवा कर लें ! तब मैंने बिना प्रार्थना किए ही सेवा आरम्भ कर दी । वैसे मैं संगणकको आरम्भ करके प्रार्थना करती हूं एवं जबतक मैं प्रार्थना करती हूं तब तक ‘विन्डो’ खुल जाती है और मैं सेवा करने लग जाती हूं । जब मैंने मासिकके अंक दोके श्लोक ‘कॉपी-पेस्ट’कर धारिका बन्द करते समय देखा तो ज्ञात हुआ कि अभी समय है और मैंने सोचा कि अभी और सेवा कर लेती हूं ! जब मैंने पुनः धारिका खोली तो उसमें पहले की हुई सेवा संरक्षित नहीं हुई थी । यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ । अनेक बार भिन्न पद्धतिसे धारिका खोलकर देखनेपर समझमें आया कि सेवा तो मैंने की थी; किन्तु विषय संरक्षित नहीं हुईथी, जबकि मैंने उसे बन्द करनेसे पूर्व संरक्षित किया थी और वह धारिका किसी अन्य ‘फोल्डर’में भी कहीं नहीं थी । बच्चोंने भी देखा तो वे भी आश्चर्यचकित हो गए तब बेटेने मुझसे पूछा कि आपने प्रार्थना की थी ? तब ध्यानमें आया कि मैंने सेवा आरम्भ करनेसे पूर्व प्रार्थना नहीं की थी, तभी अनिष्टशक्तियोंने आक्रमण कर दिया । इस प्रसंगसे प्रार्थनामें कितनी शक्ति है, यह समझमें आया ! – (१३.११.२०१८)

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१०. गुरुमांको स्थूल या सूक्ष्मसे कष्ट बतानेपर कष्ट हुए दूर

जबसे उपासनाके माध्यमसे साधना आरम्भ की है, मुझे कई छोटी-छोटी अनुभूतियां प्रतिदिन होती रहती हैं, परन्तु दो अनुभूतियां विशेष हैं, एक मेरी व एक मेरी बेटी तान्याकी, जो इस प्रकार हैं

मेरी बेटीको लगभग पांच वर्षोंसे चर्मरोग था जोकि पहले बहुत कम था; इसलिए अधिक ध्यान नहीं दिया था । कभी-कभी अपने आप ठीक हो जाता था, कभी बढ जाता था । एक वर्षसे यह बढने लगा था, जिससे मुझे चिन्ता होने लगी थी; इसीलिए एक ‘व्हाट्सऐप्प’ ‘गुट जो साधकों’ हेतु मांने बनवाया है और जिसमें हम साधक अपनी चूकें और व्यष्टि एवं समष्टि साधना हेतु प्रयत्न साझा करते हैं, उसमें सभी चूकोंमें चूकको चिन्ता करना इस चूक अन्तर्गत लिखा था । बस उसके पश्चात ही उसका रोग ठीक होने लगा ! एक अच्छे चिकित्सकके पास गए व उसका रोग १५ दिनों में ९९℅ ठीक हो गया ।जिससे मांके प्रति कृतज्ञताका भाव आया। यह बात मैंने अपनी बेटीको भी बताई थी।

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११. मेरी पुत्रीकी अनुभूति – मनमें विचचार करनेसे कष्टका न्यून होना

इसी प्रकार उसके एक घुटनेमें वेदना होने लगी; मैंने सोचा कि व्यायामशाला जाती है तो उसी कारण घुटना पीडा दे रहा होगा; परन्तु जैसे कहते हैं – ‘जिस तन लागे, वह तन जाने’ । सम्भवतः उसे अधिक कष्ट था । कहती थी कि सवेरे घुटना अकड जाता है, खडे-खडे भी पीडा होती रहती है; परन्तु मैंने कहा कि व्यायाम करोगी तो ठीक हो जाएगा । उसके मनमें ऐसे ही आया कि यदि ! ‘मां’ अपनी चूकोंमें लिख दे और तनुजा मांतक पहुंच जाए तो मेरी पीडा ठीक हो जाएगी । यह बात उसने मुझे नहीं बताई और अगले दिवस जब वह उठी तो उसका घुटना पूर्णतः ठीक था । उसने बार-बार घुटनेको मोड कर भी दिखाया कि पीडा नहीं है । वह इतनी प्रसन्न हुई कि मुझे कहा कि मेरी ओरसे तनुजा मांके श्री चरणोंमें कृतज्ञता व्यक्त करना । – रिम्पल गुप्त, जालंधर (पंजाब) (२८.१०.२०१८)



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