एक साधिका की अनुभूति


उपासनाके आश्रममें मात्र बीस दिवस सेवा करनेसे वर्षों पुराना खुजलीका रोग समाप्त होना
मुझे बचपनसे ही खुजली और फोडे–फुंसियोंकी समस्या थी । अत्यधिक औषधि लेनेपर मेरे हाथके अतिरिक्त मेरे शेष शरीरके कष्ट दूर हो गए । मेरे हाथ मुझे गन्दे लगते थे, उसमें फुंसियां होती थी और उनसे पानी निकलता था, मैंने गोड्डा (झारखण्ड ) के सभी आधुनिक वैद्योंको दिखाया था और अनेक औषधियां भी लीं;परन्तु मेरा कष्ट अल्प नहीं हुआ । मेरे हाथकी अंगुलियोंमें खुजलीके चिह्न (दाग) भी रह जाते थे और उसे खुजलाते रहनेसे वे भद्दे और मोटे दिखने लगे थे । मेरे माता-पिता मेरे विवाहके बारेमें बात कर रहे है और इस कारण मैं अपनी हाथकी अंगुलियोंको लेकर और अधिक चिन्तित थी ।

मैं, दिनांक २४ अप्रैल २०१३ को गोड्डासे दिल्ली उपासनाके नये और प्रथम सेवाकेन्द्रमें अपने ग्रीष्मावकाशमें (गर्मीकी छुट्टियोंमें) सेवा करने हेतु आई । यहां रहकर रसोईघरसे सम्बन्धित, सेवाकेन्द्रकी स्वच्छतासे सम्बन्धित और प्रसारसे सम्बन्धित अनेक सेवा मुझे करने और उसमें पूज्य तनुजा मांसे सुन्दर दृष्टिकोण सीखनेका सौभाग्य मिला ।बीस दिन पश्चात एक दिवस मेरी दृष्टि हाथकी अंगुलियोंपर गई तो मैं आश्चर्यचकित हो गई, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वे मेरी अंगुलियांथीं। मेरी अंगुलियां सुन्दर और कोमल हो गई थीं, उसमें खुजलीका चिह्नतक नहीं था । यह सब देखकर मुझे अत्यधिक आनन्द हुआ और मुझे लगने लगा कि मैं सेवाकेन्द्रमें सदैव रहकर रसोईघरमें बर्तन धोनेकी सेवा करूं और ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त करूं। मेरे पैरके भी खुजलीके चिह्न भी मिट गए हैं और वह भी कोमल और सुन्दर हो गएहैं। इस अनुभूतिसे मुझे समझमें आया कि सेवाकेन्द्रके चैतन्यके कारण ही यह सम्भव हो पाया है । मैं इस हेतु परम पूज्य गुरुदेव एवं तनुजा मांकी कृतज्ञ हूं | – एक साधिका, गोड्डा, झारखण्ड
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