गोड्डा, झारखण्डके श्री सौरव ठाकुरकी अनुभूतियां


* परीक्षासे पहले मैं कुछ दिन आश्रम रहने आया था । एक दिवस कुण्डोंके (गमलोंके) लिए मिट्टी लानेकी सेवा मिली । मैं और एक सहसाधक पास ही मिट्टी लाने गए । सहसाधक खुरपीसे मिट्टी खोद रहे थे और मैं मिट्टी थैलेमें भर रहा था । अनायास मेरा हाथ खुरपीके नीचे चला गया । ऐसा लगा जैसे अंगुली कट गई और बहुत पीडा (दर्द) हुई; किन्तु केवल हलकी चोट लगी और व्रण (घाव) भी दो दिनोंमें ठीक हो गया । प्रतिवर्ष परीक्षासे पूर्व मेरे साथ ऐसा ही कुछ होता है, जिससे परीक्षा देनेमें अडचनें आती हैं । गुरुकृपासे इस वर्ष ऐसा होनेसे बच गया । – (२३.५.२०१५)

* मैं आश्रममें सेवा हेतु आया था, इसी मध्य झारखण्ड स्थित मेरे गांवमें, एक दिन झंझावात (आंधी-तूफान) आया । उसमें मेरे पिताजी जो खपरैलकी छत ठीक करने हेतु ऊपर चढे थे, वे नीचे गिरते-गिरते बचे । उनके दोनों पैर छतमें धंस गए और उन्हें चोट भी आई; किन्तु यदि वे उतनी ऊंचाईसे नीचे गिरते तो बहुत बडी दुर्घटना हो सकती थी, गुरुकृपासे वह टल गया । – सौरव ठाकुर, झारखण्ड (२३.५.२०१५)



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