जो राज्यकर्ता प्रजाकी चिन्ता छोडकर वैश्विक स्तुति हेतु कुछ करता है, क्या वह योग्य शासक कहलानेका अधिकारी है ?
मोदी शासनने ‘कोरोना’ महामारीके राष्ट्रीय संकटके समय विदेशमें घूमने, पढने, तीर्थयात्रा करने गए भारतीयोंको विशेष वायुयानसे उन्हें यहां लाना सम्भव कर दिया, जबकि इससे आज सवा अरबकी जनसंख्याके प्राण संकटमें पड गए; किन्तु उन दिहाडी श्रमिकोंका विचार नहीं हुआ, जो आज सहस्रोंकी संख्यामें २०० से २००० किलोमीटरकी पैदल यात्राकर अपने मूल ग्राम लौट रहे हैं ! यह समाजवाद है या पूंजीवाद ?, स्वयं निर्णय लें !
जो राज्यकर्ता अपनी निर्धन प्रजाकी चिन्ता छोडकर वैश्विक स्तुति हेतु ऐसा करता है, क्या वह योग्य शासक कहलानेका अधिकारी है ? यदि ये श्रमिक, जो गुटोंमें यात्रा कर रहे हैं, वे अपने ग्राममें ‘कोरोना’का संक्रमण पहुंचा दें या मार्गमें भूखे या थकावटके कारण मृत्युको प्राप्त हो जाए तो इसका पाप कौन भोगेगा ?, इसका मोदी शासन उत्तर दे ! और अब जब इनमेंसे अनेक लोग अपने ग्राम पहुंच चुके हैं तो उसके लिए बस चलानेकी जो उपाय योजना आरम्भ की है, वह भी विशेषकर उत्तर प्रदेश व देहली शासनद्वारा, यह प्रयास केन्द्रीय स्तरपर योग्य सावधानियोंके साथ क्यों नहीं किया गया ?
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