जो विद्या विवेकको जागृत न कर सके वह होती है कुविद्या


खरे अर्थोंमें विद्या हमारी बुद्धि और विवेकको जागृत कर हममें पात्रता निर्माण कर हमें मुक्ति प्रदान करती है, इसलिए कहा गया है ‘सा विद्या या विमुक्तये’; परन्तु आजकी मैकालेकी आसुरी शिक्षण पद्धतिने हमे योग्य और अयोग्यके मध्यका भेद भी समझने योग्य नहीं रहने दिया है, तभी तो कभी सत्त्व प्रधान रही इस भारतीय संस्कृतिमें जन्म लेनेवाले ये आजके अधिकांश मैकाले छाप कथित बुद्धिजीवी अपने विवेकको ताकपर रख पाश्चात्य संस्कृतिका अन्धा अनुकरण करते हैं, जो पूर्णतः विवेकशून्य, तमोगुणी एवं अध्यात्मशास्त्र विरहित है । सचमुच म्लेच्छ मैकालेकी वाणी सत्य सिद्ध हो गई, उसने कहा था, “ऐसी शिक्षण पद्धति बनाएंगे कि उससे शिक्षित हिन्दू कहनेको तो हिन्दू होंगे; किन्तु उसकी वृत्ति अंग्रेजों समान हो जाएगी ।” – तनुजा ठाकुर

 



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