सबरीमाला देवालयमें महिला प्रवेशपर महिला न्यायाधीश इन्दु मल्होत्राकी सोच भिन्न


सितम्बर २८, २०१८

उच्चतम न्यायालयके मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा सहित पांच न्यायाधीशोंकी पीठने ४-१ के बहुमतसे सबरीमाला देवालयमें महिलाओंके प्रवेश देनेका निर्णय दिया ! पीठने कहा कि किसीको लिंगके आधारपर पूजा करने से नहीं रोका जा सकता; इसलिए देवालयमें सभी आयुकी महिलाओंको पूजाकी अनुमति दी होनी चाहिए । इसके पश्चात केरलके सैकडों वर्ष प्राचीन सबरीमाला देवालयमें सभी आयुकी महिलाओंको प्रवेशकी अनुमति मिल गई; लेकिन पीठमें एक महिला न्यायाधीश इन्दु मल्होत्राका पक्ष इसपर भिन्न है ! उन्होंने देवालयमें सभी आयुकी महिलाओंको प्रवेश देनेके निर्णयपर विरोध किया है । जस्टिस मल्होत्राने महिलाओंके प्रवेशको लेकर अपने सह न्यायाधीशोंके पक्षसे असहमति दिखाई है ।

जस्टिस मल्होत्राने कहा है कि ऐसे प्रकरणमें जिनसे लोगोंकी गहरी आस्था जुडी है, उन्हें देशमें धर्मनिरपेक्षताकी परतसे नहीं मढना चाहिए ! उन्होंने कहा कि यह एक सती प्रथा जैसा समाजिक बुराईका प्रकरण नहीं है, जिसमें न्यायालयको हस्तक्षेप करना चाहिए ! अनुच्छेद २५ पूजा करनेका आधारभूत अधिकार देता है; लेकिन इसपर समानताका अधिकार हावी नहीं हो सकता ! धार्मिक प्रकरणमें समानता नहीं लाई जा सकती । उन्होंने कहा कि यह केवल सबरी मालापर सीमित नहीं है, बल्कि पूजाके सभी स्‍थानोंपर यह निर्णय लागू होता है ।

“जिसप्रकार बन्दरके हाथमें कुछ भी दिया जाए वह तोड-फोड ही करता है, उसीप्रकार स्थिति आजके बुद्धिजीवि वर्गकी है ! न ही उन्हें शास्त्र आधारका ज्ञान है, न ही सूक्ष्मका, न ही देवालयोंका, न ही ऊर्जाका ! अब ऐसेमें जब ज्ञान ही नहीं है तो निर्णयकी क्या अपेक्षा की जा सकती है ? भला मोची भी कभी चिकित्सक बन सकता है क्या अथवा किसान साफ्टवेयर बना सकता है क्या ? आजके समाजकी यही स्थिति है !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : लाइव हिन्दुस्तान



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