कलियुगी गुरु-शिष्य सम्बन्धमें शिष्य यदि अधिक गुणवान हो तो वह गुरुसे आगे निकल जाता है, इसकी मैंने प्रतीति कुछ दिवस पूर्व ली है । मैं एक गुरु-शिष्यसे मिली । गुरुका आध्यात्मिक स्तर ४५% था और शिष्यका ५०% । जब मैंने यह जानना चाहा कि यह कैसे सम्भव हुआ ? तो ज्ञात हुआ कि शिष्यने जब गुरुके मार्गदर्शनमें साधना आरम्भ की थी तो उसका आध्यात्मिक स्तर ३५% ही था; किन्तु उसने अपने गुरुकी भाव-भक्तिसे सेवा की एवं मनःपूर्वक अपने गुरुकी आज्ञाका पालन किया इसकारण उसकी प्रगति गुरुसे अधिक हो गई । इससे ही आज्ञापालनका महत्त्व ज्ञात होता है ।
आप सोच रहे होंगे कि ४५% वाले गुरु कैसे हो सकते हैं ? वर्तमान कालमें अधिकांश तथाकथित गुरुओंका आध्यात्मिक स्तर ३५% से ५०% तक है । इसके पीछे मूल कारण है समाजमें भी अधिकांश लोगोंका आध्यात्मिक स्तर २५% से ३८% है । ध्यान रहे हमें गुरु हमारे आध्यात्मिक स्तर, भाव, साधनाकी उत्कण्ठा अनुरूप ही मिलते हैं ।
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