कलियुगकी सर्वोत्तम साधना


नाम संकीर्तन योग कलिकालमें साधारण व्यक्तिकी सात्त्विकता निम्न स्तरपर पहुंच गयी है | ऐसेमें वेद उपनिषद्के गूढ़ भावार्थको समझना क्लिष्ट हो गया है | अतः ज्ञानयोगकी साधना कठिन है | वर्तमान समयमें लोगोंके पास पूजा करनेके लिए दस मिनट भी समय नहीं होता तो अनेक वर्षों तक विधिपूर्वक ध्यान योगकी साधना कहां संभव है ? उसी प्रकार कर्मकांड अंतर्गत यज्ञयाग करना भी वर्तमान समयमें कठिन हो जाता है क्योंकि यज्ञयागके लिए सात्त्विक सामग्री एवं सात्त्विक पुरोहितका होना अति आवश्यक है साथ ही यज्ञयागके लिए कर्मकांडके कठोर नियमोंका पालन करना भी सरल नहीं | अतः कलियुगके लिए सबसे सरल मार्ग है भक्ति योग और उसके अंतर्गत नामसंकीर्तनयोग सबसे सहज और सरल साधना मार्ग है | अब हम नामसंकीर्तनयोगका महत्त्वके विषयमें देखेंगे |

मनुस्मृतिमें कहा गया है ये पाकयज्ञाश्चत्वारो विधियज्ञसमन्विता: ।

सर्वे ते जपयज्ञस्य कलां नार्हन्तिषोडशीम् ।। (मनुस्मृति २.८६)

अर्थात: गृहस्थद्वारा जो चार महायज्ञ (वैश्वेदेव , बलिकर्म , नित्य श्राद्ध एवं अतिथि भोजन) प्रतिदिन किये जाते हैं, जपयज्ञका फल इस सब कृतियोंके फलसे कई गुना अधिक होता है | नामजपमें जप शब्दकी व्युत्पत्ति ‘ज’ जोड़ ‘प’ से हुई है जप शब्दका अर्थ है ‘जकारो जन विच्छेदकः पकारो पाप नाशक: | अर्थात जो हमें जन्म और मृत्युके चक्रसे निकाल कर हमारे पापोंका नाश करता हैं उसे उसे जप कहते हैं |

साधनाकी अखंडता नामजपसे ही संभव है | यदि हमें उस अनंत परमेश्वरसे एकरूप होना है तो हमें अखंड साधना करनी होगी और ज्ञान योगके अनुसार ग्रथोंका अखंड पठन करना या ध्यानयोगके अनुसार अखंड ध्यान लगाना या त्राटक या प्राणायाम करना या भक्तियोग अनुसार अखंड भजन करना, पूजा करना, तीर्थ करना, या कीर्तन प्रवचन सुनना यह भी २४ घंटे संभव नहीं | साथ ही गृहस्थके लिए घर-द्वार, बाल-बच्चे, नौकरी-चाकरी सब संभालते हुए साधनामें अखंडता बनाये रखनेका सबसे अच्छा साधन है नामजप करना | कुछ व्यक्तिको यह भ्रान्ति होती है कि आसन और प्राणायामके माध्यमसे हम आध्यात्मिक प्रगति कर सकते हैं | यह अपने आपमें एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण है | आसन और प्राणायाम हमारी आध्यात्मिक प्रगति करवानेकी क्षमता नहीं रखते | वे मात्र हमारी स्थूल देह एवम प्राण देहकी कुछ सीमा तक शुद्धि कर सकते हैं | इन देहोंकी शुद्धि अन्य साधना मार्गसे भी संभव है | अतः आध्यात्मिक प्रगतिमें आसन एवं प्राणायामको विशेष महत्व नहीं दिया जाता है | इसका एक उदहारण देती हूं |

झारखंडके गोड्डा जिलेमें एक परिवार एक योगासन सिखानेवाले गुरुके मार्गदर्शनमें अनेक वर्षोंसे आसन एवं प्राणायाम करते हैं और अन्योंको भी सिखाते हैं परन्तु उस परिवारके सभी सदस्योंको अनके शारीरिक एवं मानसिक कष्ट है क्योंकि उस परिवारके पितर अत्यंत अशांत है और घरमें कुलदेवीका प्रकोप भी है क्योंकि योगिक क्रियासे शरीरकी शुद्धि तो हो सकती है पितरोंको गति नहीं मिल सकती और न ही कुलदेवता प्रसन्न हो सकते हैं | इन सब कष्टोंके निवारण हेतु योग्य साधना ही करनी पड़ती है और जबसे उस परिवारने योग्य प्रकारसे साधना करने आरम्भ किये है उनके कष्टका प्रमाण कम हो गया है | आसन और प्राणायाम उन व्यक्तियोंके लिए योग्य है जो और किसी मार्गसे साधना नहीं कर पा रहे हों | आसन और प्राणायामके माध्यमसे मात्र शरीरकी शुद्धि होती है और शारीरिक क्षमता बढ़नेके कारण प्रारब्धकी तीव्रता भोगनेकी शक्ति मिलती है |

किसी भी योगमार्गसे साधना करनेपर स्थूल देह एवं प्राण देहका अधिकाधिक २०% से ३०% तक ही शुद्धि होती है और स्वर्ग एवं उसके आगेके लोक अर्थात महा, जन, तप या सत्य लोक तकके आध्यात्मिक प्रवास हेतु सभी देहोंकी पूर्ण शुद्धि परम आवश्यक है और नामजपसे हमारे चारो देह अर्थात स्थूल देह, मनो देह अर्थात मन, कारण देह अर्थात बुद्धि तथा महाकारण देह अर्थात अहंकी पूर्ण शुद्धि संभव है | यह नामसंकिर्तनयोगका महत्व है |-तनुजा ठाकुर



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