अगस्त १२, २०१८
बैंगलूरुके अजय ऊषाकान्त अच्छी-खासी लाखों रूपये अर्जित कर रहे थे; लेकिन अब निशुल्क वैदिक शिक्षा देते हैं ! ‘फोर्ब्स इण्डिया’ पत्रिकाको दिए एक साक्षात्कारमें अजय ऊषाकान्तने बदली हुए जीवनके बारेमें कहानी सुनाई । अजय ऊषाकान्तके अनुसार ८० के दशकके अन्तमें उन्होंने मुम्बईमें हीरा व्यापारीके रूपमें आरम्भ किया था; लेकिन पारिवारिक समस्याओंके चलते १९९४ में जन्मस्थानपर बच्चोंके सामानकी दुकान खोल ली । एक कारपेण्टरी इकाईका भी आरम्भ किया, जो पांच सितारा विश्रामालय और सर्विस अपार्टमेंट्समें बच्चोंके लिए पालने आदि बनाकर विक्रय करती थी । व्यापारसे प्रत्येक माह लगभग ६० लाख अर्जित कर रहे थे । देश भरमें २०० संग्रहस्थान खोलनेकी योजना बनी थी । अन्य साझेदारोंके साथ महाराष्ट्रके दो नगरोंमें ‘द बेबी सेण्टर ब्राण्ड’के नामसे ८ संग्रहस्थान भी खोल दिए थे; लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि सब पीछे छूट गया !
ऊषाकान्तके अनुसार एक दिवस रात्रिभोजके समय उनकी १७ वर्षीय पुत्रीने पूछ लिया, ”अधिक महत्वपूर्ण क्या है, धन या कुटुम्ब ?” बातको अगले दिवसके लिए टाल सकता था; लेकिन पुत्रीने फिर पूछा तो उसे समझानेके लिए तर्क देने लगा कि उसकी विद्यालयका शुल्क भरनेके लिए, उसकी और उसके बच्चोंकी देखभाल करनेके लिए पैसोंकी आवश्यकता पडेगी । ऊषाकान्तके अनुसार तभी पुत्रीके एक उत्तरने झकझोरा और वह सोचते रह गए । वह बोली, ”इसका अर्थ है कि आपने जो संस्कार दिए है, उसपर आपको विश्वास नहीं है !”
ऊषाकान्तके अनुसार इस प्रकरण और कर्करोगसे पिताजीकी मृत्युने आत्मसाक्षात्कारका अवसर दिया । वह बताते हैं कि मैं स्वयंसे पूछता था, ”मैं इस पृथ्वीपर क्यों हूं ? शरीर को क्या जीवित रखता है ? और मैं कौन हूं ?” भगवद्गीता जैसी पवित्र ग्रन्थोंकी ओर ध्यान बढा । गुरुओंका साथ मिला और जीवन बदल गया ! वह बताते हैं कि २०१५ में एक युवा लडका मिला, जो नशेकी लतसे जूझ रहा था, एक वर्ष तक उसे राह दिखाया और वह अवसाद मुक्त हो गया । यहां से विचार आया कि जो ज्ञान अर्जित किया है, उसे बांटा भी जाए । उभरते हुए उद्यमियोंको उनके वयापार सम्बन्धी सेवा देने वाले अमेरिकी उद्योग ‘वीवर्क’के साथ कार्य कर रहे ऊषाकान्तके एक मित्रने सुझाव दिया कि वह वहां कार्य करें । वह कहते हैं जब पैसेकी आवश्यकता थी तो उसका पीछा किया, अब आवश्यकता है नहीं ! निशुल्क ज्ञान इसलिए बांटते हैं; क्योंकि उन्हें भी यह निशुल्क मिला ।
स्रोत : जनसत्ता
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