किसीकी न सुनना और मनानुसार आचरण करना यह है तीव्र अहंका लक्षण


कुछ दिवस पूर्व एक पुरोहित, हमारे एक साधक पुरोहितके साथ आश्रममें आए थे । वे दोनों घनिष्ठ मित्र हैं । मैंने हमारे साधक-पुरोहितसे कहा कि उनमें बहुत अधिक अहं है । मेरा कहनेका अर्थ था कि वे उन्हें पुरोहितके रूपमें आश्रममें न लाएं; किन्तु उन्हें यह बात समझमें नहीं आई और वे उन्हें शिवरात्रिपर लघुरुद्रके अनुष्ठान हेतु ११ पुरहितोंकी टोलीमें ले आए । अनुष्ठानके समय जब सब मन्त्रोच्चारण कर रहे थे तो वे महोदय पूरे अनुष्ठानमें मनमें ही मन्त्र पढ रहे थे । उनके मित्र अर्थात हमारे साधक पुरोहितने उन्हें तीन-चार बार सबके साथ मन्त्रोच्चारण हेतु कहा भी; किन्तु वे अपने मनानुसार आचरण करते रहे । उनके इस आचरणसे उन्हें लज्जा आई । जब वह यह प्रसंग बता रहे थे तो मैंने उनसे कहा, अहंकारी व्यक्ति किसीकी नहीं सुनते हैं, अपने आपको सबसे पृथक मानना, वैसे ही आचरण करना, किसीकी नहीं सुनना, कार्य पद्धतिका पालन न करना, यह सब दुर्गुण उनमें सहज देखनेको मिलते हैं ।” अर्थात सूक्ष्मसे मुझे जो भान हुआ, उसकी प्रतीति ईश्वरने उन्हें त्वरित दे दी ।



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