भगवद्गीताकी मुख्य सीख क्षात्रधर्म साधना ही है अर्थात ‘जब अधर्म होता दिखाई दे तो अपने अन्दरकी क्षात्रवृत्तिको जागृतकर अधर्म प्रसारित करनेवालोंको उचित दण्ड देना एवं धर्मकी पुनः संस्थापना करना’ ! आज गीताकी इस सीखको सामान्य जनमानस तक पहुंचाकर, उन्हें इस साधनाको करनेकी प्रेरणा देनेवाले तेजस्वी धर्मगुरुओंकी अत्यधिक आवश्यकता है ! उस कालमें एक दुर्योधन तथा ९९ कौरव थे; इसीलिए एक अर्जुन समेत चार भाई(पांच पांडव) उनके सर्वनाश हेतु पर्याप्त थे, आज सहस्रों दुर्योधन सर्वत्र अधर्म फैला रहे हैं; अतः आज अनेक अर्जुन समान धर्मवीरोंकी आवश्यकता है, जो हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना हेतु कार्यरत हों एवं सभी धर्मगुरुओंको आजके कालमें ऐसे अनेक अर्जुनको निर्माण करना, यही उनका मूल धर्मकर्तव्य है अन्यथा अपने अनेक कोटि भक्त मण्डलियोंकी संख्याके विषयमें राग अलापनेवाले धर्मगुरुओंको इतिहास कभी क्षमा नहीं करेगा ! – तनुजा ठाकुर
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