क्यों करें अखण्ड नामस्मरण ? (भाग – १४)


प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनको सुखी करने हेतु व्यावहारिक स्तरपर अनेक प्रयत्न करता है । इस हेतु वह धनार्जन कर उसे रखता है, अपने जीवनमें यथाशक्ति सुख-सुविधाओंकी व्यवस्था करता है, विपत्तिमें भी उसे कष्ट न हो इस हेतु अनेक उपाययोजना या पूर्वसिद्धता करके रखता है । जिस प्रकार मनुष्य लौकिक स्तरपर अपने कल्याण हेतु प्रयत्न करता है, उसी प्रकार पारलौकिक जगतमें उसका कल्याण हो, इस हेतु विशेष प्रयास करने चाहिए । लौकिक जगतमें वह अपने प्रयत्नोंसे जो भी प्राप्त करता है, जैसे धन, राज्य, भवन, सुन्दर स्त्री, पुत्र-पौत्रादि वह सब मृत्यु उपरान्त यहीं रह जाता है; क्योंकि जड वस्तुके साथ मृत्यु उपरान्त प्रवास करना सम्भव नहीं होता, वहीं सूक्ष्म वस्तुओंको या तत्वोंको कोई भी अपने साथ ले जा सकता है और नामजप सूक्ष्म-अति-सूक्ष्म है एवं इसके साथ जानेसे उच्च लोकोंमें स्थान प्राप्त होता है अर्थात मृत्यु उपरान्तकी यात्रा सुगम होती है; इसलिए नामजपका अखण्ड अभ्यास करना चाहिए । मृत्यु उपरान्त नामजपके परिणामकी पुष्टि स्कन्द पुराणके इस शास्त्र वचनसे, जिसमें यमराज नामजपकी महिमा बताते हुए कहते हैं –
गोविन्द माधव मुकुन्द हरे मुरारे
शम्भो शिवेश शशिशेखर शूलपाणे ।
दामोदराच्युत जनार्दन वासुदेव
त्याज्या भटा य इति संततमामनन्ति ।।

अर्थ : ‘जो गोविन्द, माधव, मुकुन्द, हरे, मुरारे, शम्भो, शिव, ईशान, चन्द्रशेखर, शूलपाणि, दामोदर, अच्युत, जनार्दन, वासुदेव – इस प्रकार सदा उच्चारण करते हैं, उनको मेरे प्रिय दूतो ! तुम दूरसे ही त्याग देना ।’
इससे पुनः सिद्ध होता है कि नामजपसे लौकिक और पारलौकिक दोनों ही कल्याण होते हैं; अतः नामजप करें !



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