संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं, बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम ‘संस्कृत’ है । केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है, जिसका नामकरण उसके बोलने वालोंके नामपर नहीं किया गया है । संस्कृतको संस्कारित करनेवाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं, बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्रके प्रणेता महर्षि पतञ्जलि हैं । इन तीनों महर्षियोंने बडी ही कुशलतासे योग दर्शनकी क्रियाओंको भाषामें समाविष्ट किया है। यही इस भाषाका रहस्य है ।
अमेरिकाके ‘अमेरिका कांग्रेस पुस्तकालय’में ६७०० (छह हजार सात सौ) संस्कृत भाषाके हस्त लिखित ग्रन्थ, आज भी भारतके गौरवका गुणगान कर रहे हैं और सारे जगतमें प्रकाशित होनेवाले संस्कृत साहित्यका सूचीपत्र भी आप वहांसे प्राप्त कर सकते हैं । अभी कोई लगभग तीस वर्षकी बात है कि उत्तरी अमेरिकाके दक्षिणी भागमें अन्वेषण किया गया । वहां एक मनुष्य जाति मिली जो अपनी ही भाषामें बोलती थी । उनकी उस भाषाका नाम, भाषा शास्त्रियोंने ‘ब्रोकिन संस्कृत’ (टूटी-फूटी संस्कृत) रखा । यह घटना भी संस्कृतके महत्वका दर्शाती है ।
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कैसे सीखें संस्कृत ?
विद्यालयीन पाठ्यक्रमोंमें बारहवीं तकके पुस्तकोंका प्रथम अभ्यास करें, तत्पश्चात ‘लघुसिद्धान्तकौमुदी’ जैसे ग्रन्थोंका अभ्यास आरम्भ करें ! किसी भी भाषाका प्राण उसका व्याकरण होता है और संस्कृतका व्याकरण एक दर्शन है, आप जितना सूक्ष्मतासे इसका अभ्यास करेंगे, यह उतना ही आपको आनन्द प्रदान करेगा ! मात्र प्रतिदिन एक घण्टा इसके अभ्यास हेतु निकालनेकी आवश्यकता है । साथ ही ‘यूट्यूब’की भी सहायता ले सकते हैं; किन्तु सदैव संस्कृत सीखने हेतु प्रथम व्याकरणसे उसका अभ्यास आरम्भ करें !
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