मकर संक्रान्ति


भारतसह विश्वके अनेक देशोंमें मनाया जाता है मकर संक्रान्ति
मकरसंक्रान्तिका त्योहार हिन्दुओंके मुख्य त्योहारोंमें से एक है ! यह भारतवर्षके विभिन्न प्रान्तोंमें, विभिन्न नामों एवं विभिन्न पद्धतियोंसे मनाया जाता है; किन्तु इसका मूल स्वरूप एक ही रहता है । सूर्योपासनाका यह त्योहार, फसलोंके  त्योहार व किसानोंके  त्योहारके रूपमें भी जाना जाता है ।
यह त्योहार  तमिलनाडुमें पोंगल, गुजरातमें उत्तरायण, पंजाब और हरियाणामें माघी, असममें बीहू, उत्तर प्रदेशमें खिचडी एवं शेष भारतमें मकरसंक्रान्ति या संक्रान्तिके रूपमें मनाया जाता है । इस त्योहारको नेपाल, थाइलैंड, मयांमार, कंबोडिया, श्रीलंका आदि स्थानोंपर भी इसी श्रद्धाके साथ मनाते हैं । मकरसंक्रान्ति प्रतिवर्ष विक्रम संवत्  अनुसार पौष मास एवं शक संवत् अनुसार माघ मासके शुक्ल पक्षको मनाया जाता है ।
४. २. मकर संक्रान्ति १४ जनवरीको ही क्यों ?
इसी दिन सूर्य धनु राशिको छोड मकर राशिमें संक्रमण करते हैं, इसीलिए इस दिनको मकर संक्रान्ति कहते हैं । कर्क संक्रान्तिमें मकर संक्रान्तिके कालको दक्षिणायन कहते हैं । यद्यपि इस दिन सूर्यका उत्तरायण आरम्भ होता है; इसीलिए  इस पर्वको कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं । मकर संक्रान्तिके दिवस सूर्य देवता मकर रेखाको पार कर उत्तरी गोलार्धमें प्रवेश करते हैं एवं मकरसंक्रान्तिसे कर्कसंक्रान्ति तकका यह समय उत्तरायण व उत्तरी क्रान्तिके रूपमें भी जाना जाता है ।  सूर्यभ्रमणके कारण होनेवाले अन्तरकी पूर्ति करने हेतु प्रत्येक अस्सी वर्षमे संक्रान्तिका दिन एक दिवस आगे बढ जाता है । आजकल संक्रान्ति १४ जनवरीको पडती है । सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धतिकी समस्त तिथियां चन्द्रमाकी गतिको आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं; किन्तु मकर संक्रान्तिको सूर्यकी गतिसे निर्धारित किया जाता है,  इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरीको पडता है ।
४. ३. मकर संक्रान्तिके कालमें सूर्योपासनाको प्रधानता दिए जानेका कारण :
सामान्यत: सूर्य सभी राशियोंको प्रभावित करते हैं; किन्तु कर्क व मकर राशियोंमें सूर्यका प्रवेश धार्मिक दृष्टिसे अत्यन्त फलदायक है । यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया प्रत्येक छह  मासके अन्तरालपर होती है । भारत देश उत्तरी गोलार्धमें स्थित है । सूर्य, मकरसंक्रान्तिसे पूर्व दक्षिणी गोलार्धमें होता है अर्थात् भारतसे अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है । इसी कारण यहांपर रातें बडी एवं दिन छोटे होते हैं तथा शीत ऋतु (सर्दीका मौसम)  होती  है; किन्तु मकर संक्रान्तिसे सूर्यका उत्तरी गोलार्द्धकी ओर आना आरम्भ हो जाता है; अतएव इस दिनसे रातें छोटी एवं दिन बडे होने लगते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु (गरमीका मौसम) आरम्भ हो जाती है । दिन बडा होनेसे प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होनेसे अन्धकार न्यून होगा; अत: मकर संक्रान्तिपर सूर्यकी राशिमें हुए परिवर्तनको अन्धकारसे  प्रकाशकी ओर अग्रसर होना माना जाता है । प्रकाश अधिक होनेसे प्राणियोंकी चेतनता एवं कार्यशक्तिमें वृद्धि होगी । ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्षमें, लोगोंद्वारा विविध रूपोंमें सूर्यदेवकी उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है ।
४. ४. मान्यताओंके अनुसार मकर संक्रान्ति मनानेके भिन्न-भिन्न कारणोंमेंसे कुछ कारण इसप्रकार हैं :
४. अ. पुराणोंके अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्य अपने पुत्र शनिके घर एक मासके लिए जाते हैं, मकर राशिका स्वामी शनि है और इस दिन सूर्यदेव, शनि महाराजका भण्डार भरते हैं, ऐसा कहा जाता है ।
४. आ. ज्योतिषीय दृष्टिसे सूर्य और शनिका तालमेल सम्भव नहीं; परन्तु इस दिन सूर्य स्वयं अपने पुत्रके घर जाते हैं; इसलिए पुराणोंमें यह दिन पिता-पुत्रके सम्बन्धोंमें निकटताके शुभारम्भके रूपमें देखा जाता है ।
४. इ. एक अन्य पौराणिक कथा अनुसार मकर संक्रान्तिके दिवस भगवान विष्णुने मधु कैटभसे युद्ध समाप्तिकी घोषणा की थी । उन्होंने मधुके कन्धेपर मन्दार पर्वत रखकर उसे चाप दिया था । इसीलिए इस दिनसे भगवान विष्णु मधुसूदन कहलाने लगे ।
४. ई. शास्त्रोंके अनुसार गंगाको धरतीपर लानेवाले महाराज भगीरथने अपने अपने पूर्वजोंकी आत्माकी शान्तिके लिए इस दिन तर्पण किया था । उनका तर्पण स्वीकार करनेके पश्चात्, इसी दिन गंगा समुद्रमें जाकर मिल गई थीं । इसलिए मकर सक्रान्तिपर गंगा सागरमें मेला लगता है ।
४. उ. एक अन्य पौराणिक कथा अनुसार मां दुर्गाने दानव महिषासुरका वध करनेके हेतु इसी दिन धरतीपर पग रखा था ।
४. ऊ. महाभारतमें पितामह भीष्मने सूर्यके उत्तरायण होनेपर स्वेच्छासे शरीरका त्याग किया था, कारण यह है कि उत्तरायणमें देह त्यागनेवाले व्यक्तिकी लिंगदेह, उच्च लोकोंको प्राप्त करती है या देवलोकमें रहकर पुनः गर्भमें लौटती है । जिस व्यक्तिकी उत्तरायणमें मृत्यु होती है, उसकी अपेक्षा दक्षिणायनमें मृत्युको प्राप्त व्यक्तिके लिए, दक्षिण (यम) लोकमें जानेकी आशंका अधिक होती है । मकरसंक्रान्तिके दिवस सूर्यदेवका उत्तरायणमें प्रवास आरम्भ होता है ।
४. ए. एक मान्यताके अनुसार इसी दिन शिवजीने अपने साधकोंपर विशेष रूपसे ऋषियोंपर कृपा की थी ।

५. त्योहारका महत्त्व
५. अ. सूर्य के उत्तरायण होनेके पश्चातसे देवोंकी ब्रह्म मुहूर्त उपासनाका पुण्यकाल प्रारम्भ हो जाता है । इस कालको ही परा-अपरा विद्याकी प्राप्तिका काल कहा जाता है । इसे साधनाका सिद्धिकाल भी कहा गया है । इस कालमें देवप्रतिष्ठा, गृहनिर्माण, यज्ञकर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं ।
५. आ. साधनाकी दृष्टिसे महत्त्व : इस दिन सूर्योदयसे सूर्यास्ततक वातावरण अधिक चैतन्यमय होता है; फलस्वरूप साधना करनेवालोंको इस चैतन्यका लाभ होता है ।
६. त्योहार मनानेकी पद्धति
६. अ. मकर संक्रान्तिके कालमें तीर्थस्नान करनेपर महापुण्य मिलना : मकरसंक्रान्तिपर सूर्योदयसे लेकर सूर्यास्ततक पुण्यकाल रहता है । इस कालमें तीर्थस्नानका विशेष महत्त्व है । गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियोंके किनारे स्थित क्षेत्रमें स्नान करनेवालेको महापुण्यका लाभ मिलता है ।
६. आ. दान
  शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायणको देवताओंकी रात्रि अर्थात् नकारात्मकताका प्रतीक तथा उत्तरायणको देवताओंका दिन अर्थात् सकारात्मकताका प्रतीक माना गया है । इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापोंका विशेष महत्त्व होता है । ऐसी धारणा है कि इस अवसरपर दिया गया दान सौ गुना फलदायी होता है । इस निमित्त घी एवं कम्बलके अतिरिक्त नूतन पात्र (बर्तन), वस्त्र, अन्न, तिल, तिलपात्र, गुड, गाय, घोडा, स्वर्ण अथवा भूमिका यथाशक्ति दान करनेका शास्त्रीय विधान है । इस दिन सुहागिनें दान करती हैं, कुछ पदार्थ वे कुमारिकाओंसे दान करवाती हैं और उन्हें तिलगुड देती हैं । सुहागिनें जो हल्दी-कुमकुमका दान देती हैं, उसे ‘उपायन देना’ कहते हैं ।
१. उपायन देनेका महत्त्व  : ‘उपायन  देना’ अर्थात तन, मन, एवं धनसे दूसरे जीवमें विद्यमान देवात्वकी शरणमें जाना । संक्रांति – काल साधनाके लिए पोषक होता है । अतएव इस कालमें दिए जानेवाले उपायनसे देवताकी कृपा होती है और जीवको इच्छित फलप्राप्ति होती है ।
२. उपायनमें क्या दें ? : आजकल साबुन, प्लास्टिककी वस्तुएं जैसी अधार्मिक सामग्री उपायन देनेकी  अनुचित प्रथा है । इन वस्तुओंकी अपेक्षा सौभाग्यकी वस्तु, उदबत्ती (अगरबत्ती ), उबटन, धार्मिक ग्रन्थ, पोथी, देवातओंके चित्र, आध्यात्मसम्बन्धी ध्वनिचक्रिकाएं जैसी अध्यात्मके लिए पूरक वस्तुएं उपायनस्वरूप देनी चाहिए ।
मकर संक्रान्तिके अवसरपर गंगास्नान एवं गंगातटपर दानको अत्यन्त शुभ माना गया है । इस पर्वपर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागरमें स्नानको महास्नानकी संज्ञा दी गई है । इसी दिनसे माघ स्नान और प्रयागमें एक माहका कल्पवास आरम्भ हो जाता है ।
मकरसंक्रान्तिसे रथसप्तमीतकका काल पर्वकाल होता है । इस पर्वकालमें किया गया दान एवं पुण्यकर्म विशेष फलदायी होता है ।
६. इ. तिलका उपयोग : संक्रान्तिपर तिलका अनेक ढंगसे उपयोग करते हैं, उदा. तिलयुक्त जलसे स्नान कर तिलके लड्डू खाना एवं दूसरेको देना, ब्राह्मणोंको तिलदान, शिवमन्दिरमें तिलके तेलसे दीप दान करना, पितृश्राद्ध करना (इसमें तिलांजलि देते हैं) इत्यादि ।
 ६. ई. तिलके प्रयोगसे पापक्षालन : विष्णु धर्मसूत्रमें कहा गया है कि पितरोंकी आत्माकी शान्तिके लिए एवं स्व स्वास्थ्यवर्द्धन तथा सर्वकल्याणके लिए तिलके छह प्रयोग पुण्यदायक एवं फलदायक होते हैं । इस दिन तिलका तेल व उबटन शरीरपर लगाना, तिलमिश्रित जलसे स्नान, तिलमिश्रित जल पीना, तिलहोम करना, तिलदान करना, इन छहों पद्धतियोंसे तिलका उपयोग करनेवालोंके सर्व पाप नष्ट होते हैं ।
 ६. ई. १. आयुर्वेदानुसार महत्त्व  : शीतकालमें आनेवाली संक्रान्तिपर तिल खाना लाभदायक होता है ।
 ६. ई. २. अध्यात्मानुसार महत्त्व  :
अ. तिलमें सत्त्वतरंगें ग्रहण करनेकी क्षमता अधिक होती है; इसलिए तिलगुडका सेवन करनेसे अन्त:शुद्धि होती है और साधना अच्छी होने हेतु सहायता मिलती है । तिलगुडके दानोंमें घर्षण होनेसे सात्त्विकताका आदान-प्रदान होता है ।
आ. श्राद्धमें तिलका उपयोग करनेसे असुर इत्यादि श्राद्धमें विघ्न नहीं डालते ।
उ. निषेध : संक्रान्तिके पर्वकालमें दांत मांजना, कठोर बोलना, वृक्ष एवं घास काटना तथा कामविषय सेवन करना, ये कृत्य पूर्णतः वर्जित हैं ।
ऊ. मकर संक्रान्तिका पुण्यकाल :  वर्ष २०१७ संक्रान्तिका पुण्य काल प्रातःकाल ७.३८ मिनिटसे मध्याह्न (दोपहर) ३.३८ मिनिट तक रहेगा ।



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