मांसाहार क्यों न करें ? (भाग – १)


हमारे मनीषियोंने कहा है कि मनुष्यमें तमोगुणका प्रमाण अधिक होनेके कारण मद्यपान या मांसभक्षण करनेकी प्रवृति होना यह सामान्य सी बात है; किन्तु जो आत्मकल्याण चाहते हैं अर्थात अध्यात्मके पथपर प्रगति करना चाहते हैं, उन्हें ऐसे तमोगुणी कृत्योंका परित्याग करना चाहिए ।
मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्वं प्रवदन्ति मनीषिणः ॥
न मांसभक्षणे दोषो न मद्ये न च मैथुने ।
प्रवृत्तिरेषा भूतानां निवृत्तिस्तु महाफला ॥  मनु. ५.२८
अर्थ : जो व्यक्ति मांस खाता है, उसे इसका फल अवश्य मिलता है । महान पण्डित कहते हैं कि जो व्यक्ति जिसका मांस खाता है, वह परलोकमें उस व्यक्तिको अवश्य ही खाएगा, यही मांसका मांसत्व होता है । ऋषि कहते हैं कि मांस खाने, मद्यपान और स्त्री-प्रसङ्ग करनेमें दोष नहीं है; क्योंकि प्राणियोंकी प्रवृत्ति ही ऐसी होती है; परन्तु उससे निवृत्त होना महाफलदायी होता है ।
वैदिक संस्कृति सात्त्विक जीवन प्रणालीका प्रतिपादन करती है; अतः हमारे यहां व्रत-त्यौहारोंमें इसका सेवन करना पूर्णत: वर्जित है और एक वर्षके दो-तिहाई भागमें कोई न कोई व्रत-त्यौहार यह धार्मिक उत्सव होता ही है, इसप्रकार हिन्दू धर्म सहज ही सामान्य मनुष्यकी इन प्रवृत्तियोंपर नियन्त्रण करना सिखाता है ! धर्माचरणी व्यक्तिसे धर्म अधिष्ठित कर्मकी अपेक्षा की जाती है और शास्त्र भी इसकी यही शिक्षा देता है ।



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