मांसाहार क्यों न करें ? (भाग – २)


मनुस्मृतिमें मांस न खानेका फल सौ अश्वमेध यज्ञोंके समान बताया है ।
वर्षे वर्षेऽश्वमेधेन यो यजेत शतं समाः ।
मांसानि च न खादेद्यस्तयोः पुण्यफलं समम् ॥ – मनु. ५:५३  
अर्थ : जो सौ वर्ष पर्यन्त प्रतिवर्ष अश्वमेध यज्ञ करता है और जो जीवन भर मांस नहीं खाता है, दोनोंको समान फल मिलता है ।
याज्ञवल्क्य स्मृतिमें लिखा है –
सर्वान् कामानवाप्नोति हयमेधफलं तथा ।
गृहेऽपि निवसन् विप्रो मुनिर्मांसविवर्जनात् ॥ – आचाराध्याय ७:१८०
अर्थ : ऐसा गृहस्थ जो मांस नहीं खाता, वह घरपर रहता हुआ भी मुनि कहलाता है, विद्वान विप्र सर्वकामनाओं तथा अश्वमेध यज्ञके फलको प्राप्त होता है ।
मांसाहार न करनेसे होनेवाले लाभ बहुत अधिक हैं, विशेषकर जो अध्यात्ममें आगे जाना चाहते हैं या अपना परलोक सुधारना चाहते हैं, उन्होंने जिह्वाके वशमें आकर जीव हत्याकर मांसाहार नहीं करना चाहिए ।



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