प्रारम्भिक अवस्थाके साधकोंने नामजप करते समय माला लेकर गिनती करते हुए नामजप करना चाहिए ! इससे नामजप वृद्धिमें सहायता मिलती है | उत्तरोत्तर अवस्थामें नामजपको सांसके साथ जोडते हुए अपने लिए जो अनुकूल मुद्रा हो वह करते हुए जप करना चाहिए | वैसे तो ध्यान या ज्ञान मुद्रा सभीके लिए अनुकूल होता है किन्तु वर्तमान कालमें जब अधिकांश साधकोंको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है ऐसेमें वायु मुद्रा या आकाश मुद्रा अधिक अनुकूल होता है ! यदि किसी साधकको पित्तका कष्ट हो तो उनकेद्वारा पृथ्वी मुद्रा भी नामजप करते समय किया जा सकता है | वैसे ही वात रोगीने ज्ञान या आकाश मुद्राकी अपेक्षा वायु मुद्रा करनी चाहिए | (हस्त मुद्राके विषयमें विस्तृत जानकारी हम आपको धर्मधाराके सत्संगमें अनेक बार दे ही चुके हैं |)प्रारम्भिक अवस्थाके साधकोंने नामजप करते समय अपने गुरु या इष्टदेवताके चित्रके सामने उसे देखते हुए जप करना चाहिए | यदि अनिष्ट शक्तियोंके कष्टका प्रमाण अधिक हो तो अपने आराध्यके नेत्रमें त्राटक करते हुए भी जप करना लाभकारी होता है | वैसे तो वर्तमान कालमें नामजप करते समय भयावह दृश्य दिखाई देना, नींद आना, उबासी आना जैसे कष्ट अधिकांश साधकोंको होते हैं ऐसेमें नेत्र बंद कर नामजप करना टालना चाहिए |
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