सितम्बर ११, २०१८
रिजर्व बैंकके पूर्व गवर्नर रघुराम राजनने बैंकोंके बढते ‘एनपीए’के लिए ‘यूपीए’ कालको उत्तरदायी बताया है । संसदकी प्राक्कलन समितिको भेजे गए उत्तरमें उन्होंने कहा है कि घोटालोंकी जांच और ‘यूपीए’ शासनकी नीतिगत पंगुताके कारण बैंकोंका डूबा कर्ज बढता चला गया । राजनका यह वक्तव्य कांग्रेसकी मुश्किलें बढा सकता है; क्योंकि उनकी नियुक्ति संप्रग कालमें ही हुई थी । कांग्रेस ‘एनपीए’का दोष राजग शासनपर मंड रही है । ऐसेमें राजनका वक्तव्य कांग्रेसके लिए विकट परिस्थिति है ।
प्राक्कलन समितिने रघुराम राजनको डूबे ऋण अर्थात ‘एनपीए’के बारेमें स्थिति स्पष्ट करनेको कहा था । बताते हैं कि राजनने समितिको बताया कि वर्ष २००६ से पहले बुनियादी ढांचा परियोजनाओंमें पैसा लगाना काफी लाभका सौदा था । ऐसेमें बैंकोंने बडे उद्योगोंको ऋण दिए । इसमें ‘एसबीआइ कैप्स’ और ‘आइडीबीआइ’ जैसे बैंक सबसे आगे थे ।
इनकी देखादेखी बाकी बैंकोंने भी बडे उद्योगोंको मुक्त हस्तसे ऋण देना आरम्भ कर दिया । बिना इस बातको जांच किए कि परियोजना विवरण कैसा है और वे इतना बडा ऋण लौटा भी पाएंगे या नहीं ?; लेकिन उसके बाद देशमें विकासकी गति धीमी पड गई । वर्ष २००८ में आर्थिक मन्दीने आ घेरा, जिसके पश्चात बैंकोंके लाभके सारे अनुमान धरे रह गए ! उद्योगपतियोंके विरुद्ध कार्यवाहीसे कहीं स्थिति और विकट न हो जाए, इस भयसे उन्होंने कार्यवाहीके स्थानपर उन्हें ऋण लौटानेके नामपर और ऋण दिए । कोयला आदि घोटालोंमें उलझे शासनको इस ओर देखनेकी फुरसत नहीं थी !
इससे पूर्व ‘एनपीए’ संकटपर पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविन्द सुब्रमण्यम जुलाईमें समितिके समक्ष प्रस्तुत हुए थे । उन्होंने ‘एनपीए’ संकट से निपटनेके लिए पूर्व आरबीआइ अधिकारी राजनकी प्रशंसा की थी । उन्होंने समितिको बताया था कि समस्याके उचित संज्ञानका श्रेय रघुराम राजनको जाता है । सुब्रमण्यमके वक्तव्यके पश्चात ही प्राक्कलन समितिने रघुराम राजनको समितिके समक्ष उपस्थित होकर इस विषयमें पूरा ब्यौरा देनेको कहा था ।
बैंकोंका ‘एनपीए’ हुआ ८.९९ ट्रिलियन रुपये
ज्ञात हो कि इस समय सभी बैंक ‘एनपीए’की समस्यासे जूझ रहे हैं । दिसम्बर २०१७ तक बैंकोंका एनपीए ८.९९ ट्रिलियन रुपये हो गया था, जो कि बैंकोंमें जमा कुल धनका १०.११ प्रतिशत है । कुल एनपीएमें से सार्वजनिक क्षेत्रोंके बैंकोंका ‘एनपीए’ ७.७७ ट्रिलियन है !
कुछ दिवस पूर्व नीति आयोगके उपाध्यक्ष राजीव कुमारने राजनपर गम्भीर आरोप लगाए थे । उन्होंने कहा कि आर्थिक सुस्तीके लिए राजनकी नीतियां उत्तरदायी थीं, नोटबन्दी नही ।
राजीव कुमारने कहा कि राजनकी नीतियोंके कारण उद्योगोंकी स्थिति ऐसी हो गई कि वो बैंकोंसे ऋण नहीं ले पा रहे थे, जिसने बैडलोनकी मात्राको बढा दिया । उन्होंने आगे कहा कि ‘नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स’पर राजनकी जो नीतियां थीं, वो ही अर्थव्यवस्थाको सुस्तीकी ओर ले गईं, न कि शासनकी ओरसे लिया गया नोटबंदीका निर्णय !
“ये सभी पूर्व अध्यक्ष पद निवृत्तिके पश्चात ही क्यों सत्य उजागर करते हैं ! सत्ताके लोभी इन लोगोंका हिन्दू राष्ट्रमें कोई स्थान नहीं होगा” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : दैनिक जागरण
Leave a Reply