मद्यपान बंदीके एक वर्ष पूर्ण : पड़े २ लाख से अधिक छापे, हुई ४५ सहस्र व्यक्ति बंदी


5 अप्रैल यानी बुधवार को शराबबंदी का एक साल पूरा हो गया। इस एक साल में दो लाख से अधिक स्थानों पर छापेमारी हुई। इसमें देसी-विदेशी नौ लाख लीटर से अधिक अवैध शराब बरामद की गई। शराबबंदी के खिलाफ काम करने वाले 45 हजार लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।

शराबबंदी कानून का पालन कराने के लिए बिहार पुलिस, मद्यनिषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग की ओर से छापेमारी की जा रही है। साथ ही एसएसबी से भी समन्वय कर अवैध तरीके से सीमा पार से शराब लाने वालों को पकड़ा जा रहा है। मद्यनिषेध व उत्पाद विभाग के अनुसार दो लाख 18 हजार स्थानों पर छापेमारी कर 40 हजार से अधिक मामले दर्ज हुए। इसमें 45 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया। ब्रेथ एनलाइजर, गश्ती दल व भ्रमण के दौरान सुरक्षा एजेंसियां लगातार अवैध तरीके से शराब की तस्करी करने वालों को पकड़ रही है।

सीएम ने की थी घोषणा : एक साल पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 5 अप्रैल 2016 को हुई कैबिनेट बैठक के बाद पूर्ण शराबबंदी की घोषणा की थी। घोषणा के बाद राज्य में तत्काल प्रभाव से पूर्ण शराबबंदी लागू हो गई। चुनावी मैदान में जाने के पहले सीएम ने 9 जुलाई 2015 को जीविका के एक सम्मेलन में महिलाओं की मांग पर शराबबंदी का वायदा किया था। सरकार बनते ही अपने पहले सरकारी कार्यक्रम 26 नवम्बर 2015 को शराबबंदी की घोषणा की। एक अप्रैल से बिहार के गांवों में शराब की बिक्री बंद हुई। साथ ही शहरों में देसी शराब की बिक्री बंद कर सरकारी दुकानों से विदेशी शराब की बिक्री का निर्णय लिया गया। लेकिन लोगों की मांग पर राज्य सरकार ने 5 अप्रैल 16 से बिहार में देसी-विदेशी सहित किसी भी तरह की शराब की बिक्री, उपभोग, खपत आदि पर पूरी तरह रोक लगा दी।

शराबबंदी के पहले हुआ

1.17 लाख शपथ पत्र जमा हुए
84 हजार नुक्कड़ नाटक हुआ
07 लाख से अधिक नारे लिखे गए

शराबबंदी के बाद

कुल छापेमारी-218722
दर्ज मामला-40413
गिरफ्तारी-45033
जेल-44996

बरामदगी हुई

देसी शराब-313187 लीटर
स्प्रीट-47161 लीटर
विदेशी-525334 लीटर
बीयर-11371 लीटर
चुलाई-107320 लीटर
मसालेदार देसी-7295 लीटर
ताड़ी-10277 लीटर
महुआ-62 क्विंटल

दुर्गम राहों से निकलकर बुलंद आवाज बनी शराबबंदी

बिहार में पूर्ण शराबबंदी के एक साल पूरे हो गए। आशंकाओं, आरोपों और चुनौतियों से भरी दुर्गम राहों से गुजरकर यह यात्रा पूरी हुई है। यह एक साल एक तरफ सरकार के अटल संकल्प का तो दूसरी तरफ इस फैसले को कमजोर करने के प्रयासों का गवाह भी है। कई बार इसके लिए बने कानून के कठोर प्रावधानों पर सवाल उठे, इसमें संशोधन की अटकलें लगाई गई, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अब सबसे मौजू सवाल है कि शराबबंदी से क्या खोया और क्या पाया?

आलोचना के दो तर्कों को नहीं मिली जमीन : शराबबंदी की आलोचना के दो अहम तर्क रहे हैं। पहला इससे सरकारी खजाने को चपत लगेगी। दूसरा इस कानून के कठोर प्रावधानों की आड़ में लोगबाग दुश्मनी साध सकेंगे और पुलिस वाले निर्दोषों को फंसा सकते हैं। लेकिन इन दोनों तर्कों को इस एक साल में मजबूत धरातल नहीं मिली। सरकार के राजस्व में बहुत अधिक की कमी नहीं आई। जितनी कमी आई, उसका कारण नोटबंदी है या शराबबंदी, यह शास्त्रार्थ का विषय है। नोटबंदी से राज्य में जमीन की खरीद बिक्री आधी रह गई और इस कारण राज्य सरकार को करीब 750 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ। इतनी ही कमी कुल राजस्व में आई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो टूक कहते हैं कि शराबबंदी से राजस्व में कमी नहीं आई है। शराब पर खर्च होने वाले पैसे लोग परिवार की अन्य जरूरतों पर खर्च कर रहे हैं और उन रास्तों से सरकार को नए क्षेत्र में राजस्व की प्राप्ति हो रही है। दूसरा ऐसे मामले कम ही सामने आए, जिसमें किसी ने किसी को शराबबंदी कानून के तहत फंसा दिया या पुलिस वालों ने निदोर्षों को फंसाने का कुचक्र रचा हो।

बिहार की शराबबंदी के असर ने सीमा लांघी

अब सबसे अहम सवाल है कि इससे हासिल क्या हुआ? दरअसल बिहार के गांवों और शहरों के इस एक साल में बदले हालात और देश के विभिन्न कोने में उठ रही शराबबंदी की आवाज और आंदोलनों में इसका जवाब तलाशा जा सकता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दूसरे राज्यों से शराबबंदी मुहिम के तहत होने वाले कार्यक्रमों के आमंत्रण मिल रहे हैं। उधर, सूबे के गांवों में हालात बदले हैं। वह दौर था जब शाम ढलते ही, गांव, चौक और नुक्करों पर सिमट जाते थे। नशे में तनातनी, नोंकझोंक, हुड़दंग जैसे रोजमर्रा बन गए हों। महिलाओं और खासकर गरीब, मजदूर परिवारों की महिलाओं का जीवन कठिन हो गया था। ऐसे परिवारों पर महाजनों का कर्ज चढ़ता जा रहा था। बहुत पुरानी बात नहीं है, जब अनेक जन प्रतिनिधियों से भी यह सुनने को मिल जाता था कि शाम के बाद गांवों में जाना कठिन हो गया है। उस समय सरकार पर शराब को प्रोत्साहन देने के आरोप भी लगते थे।

गांवों में सुकून और परिवारों में सुधार

आज यह आम धारणा है कि शराबबंदी ने गांवों की सूरत और सीरत दोनों बदल दी है। राज्य के ज्यादातर गांवों में सुकून है। गरीब परिवारों के ज्यादातर लोग दावे के साथ कहते हैं कि शराबबंदी से उनके परिवार की माली हालत सुधरी है। सड़क दुघर्टनाओं में कमी आने से अनेर्क ंजदगियां असमय काल का ग्रास बनने से बचीं। काबिले गौर है कि प्रकाशोत्सव के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी शराबबंदी के फैसले को साहसिक करार देते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जमकर प्रशंसा की और सामाजिक परिवर्तन की दिशा में बढ़ाया गया एक बेमिसाल कदम भी बताया। सर्वोच्च अदालत ने नेशनल हाईवे के 500 मीटर दायरे में शराब की बिक्री पर 01 अप्रैल 2017 से रोक लाग दी है। नेपाल में शराब की बिक्री और सेवन पर कई शर्तें लगाकर सख्ती के फैसले लिए गए हैं

सौजन्यसे : http://www.livehindustan.com



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