नवरात्रके समय होनेवाली चूकोंको टालकर भावपूर्वक करें साधना (भाग-५)


आजकल नवरात्रमें होटलोंमें फलाहारी थाली मिलती है जिसमें अनेक पकवान होते हैं । कुछ लोग जो व्रत करते हैं वे इसे बडे चावसे खाते हैं ।
ऐसे सभी लोगोंको बता दें, फलाहार करनेके पीछे दो उद्देश्य होते हैं, एक तो आहार सात्त्विक हो और दूसरा वह अल्पमात्रामें हो जिससे अधिक देरतक साधना करनेमें सुविधा हो ।
‘होटल’का फलाहार कभी भी सात्त्विक नहीं हो सकता है । दूसरा बनानेवालेके भाव, होटलवालोंके भाव कभी भी सात्त्विक नहीं हो सकते हैं; क्योंकि वे तो व्यापार करनेके उद्देश्यसे ऐसा करते हैं । यदि आप साधनाके लिए अधिक समय बैठना चाहते है तो छप्पन प्रकारके व्यंजन न ग्रहण करें ! उपवासका एक अर्थ होता है ईश्वरका सामीप्य साध्य करने हेतु प्रयास करना, जो किसी भी स्थितिमें ठूस-ठूसकर आहार ग्रहणकर साध्य नहीं किया जा सकता है; क्योंकि इससे तमोगुण बढता है और आलस्य एवं निद्रा अधिक सताती है ।



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