सितम्बर २७, २०१८
अयोध्याके ‘राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद’ विवादसे सम्बन्धित एक प्रकरणमें न्यायालयके निर्णयपर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीनके (एआईएमआईएम) अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसीने तीखी प्रतिक्रिया दी है । ओवैसीने कहा कि यदि यह प्रकरण बडी संवैधानिक पीठमें भेजा जाता, तो अच्छा होता ! मुझे आशंका है कि इस देशकी धर्मनिरपेक्षताके शत्रु न्यायालयके इस निर्णयका दुरूपयोग अपने विचारधारात्मक उद्देश्योंको पूरा करनेके लिए करेंगे !’
अयोध्याके ‘राम मन्दिर-बाबरी मस्जिद’ विवादसे सम्बन्धित एक प्रकरणमें उच्चतम न्यायालयमें गुरुवारको सुनवाई हुई । तीन न्यायाधीशोंकी पीठमें से सबसे प्रथम दीपक मिश्रा व अशोक भूषणने संयुक्त निर्णय सुनाया । न्यायाधीश भूषणके पश्चात अब्दुल नजीरने उनके निर्णयपर असहमति दिखाई । ‘राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद’ अधिकार विवादपर न्यायालयके १९९४ के निर्णयपर बडी पीठद्वारा पुनर्विचार करनेकी मांग लेकर दायर याचिकाओंपर गुरुवारको आए निर्णयकी मुख्य बातें –
१. न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायाधीश अशोक भूषणने कहा कि पुराना निर्णय उस समयके तथ्योंके अनुसार था । इस्माइल फारूकीका निर्णय मस्जिदकी भूमिके प्रकरणमें था ।
२. न्यायाधीश भूषणने कहा कि ‘निर्णयमें दो परामर्श, एक मेरी और एक मुख्य न्यायाधीशकी, दूसरी न्यायाधीश नजीरकी । मस्जिदमें नमाज पढना इस्लामका अटूट अंग नहीं है ।’ उन्होंने कहा कि ‘इस्माइल फारूकीके निर्णयपर पुनः विचारकी आवश्यकता नहीं है ।’
३. न्यायाधीश भूषणने कहा कि समूचे प्रकरणको बडी पीठमें नहीं भेजा जाएगा । इस्माइल फारूकीके निर्णयपर पुनः विचारकी आवश्यकता नहीं है । साथ ही न्यायालयने कहा कि २९ अक्टूबरसे राम मन्दिर प्रकरणपर सुनवाई आरम्भ होगी ।
४. न्यायाधीश भूषणने कहा कि सभी धर्मों और धार्मिक स्थानोंको समान रूपसे सम्मान देनेकी आवश्यकता है ।
“‘एआईएमआईएम’ प्रमुख सदैव तथाकथित धर्मनिरपेक्षताका राग आलापकर, घुमाफिराकर बातकर एक विशेष समुदायके पक्षधर रहे हैं । जब वे धर्मनिरपेक्षताके और संविधानके इतने ही पक्के है तो खुलकर क्यों नहीं कहते कि जो न्यायालयने निर्णय किया है कि नमाजका मस्जिदसे कोई लेना-देना नहीं, क्योंकि वह कहीं भी पढी जा सकती है, सर्वथा उचित है !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : जी न्यूज
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