पाक कला (भाग- १)


मैंने आजकल अनेक स्त्रियोंको पाक कलामें भी निपुणता नहीं है, ऐसा देखा है; इसलिए यह लेख शृंखला आरम्भ कर रही हूं ! भोजन पकाना और उसे अपने परिजनों एवं अतिथिको खिलाकर उन्हें तृप्त करना, यह एक स्त्री सुलभ गुण है जिसमें आज भारी गिरावट आई है ! १८ वर्ष घर-घर घूमकर भिक्षामें मिला भोजन गुरुप्रसाद मानकर सेवन करती आई हूं; इसलिए यह मैं अपने अनुभवके आधारपर बता रही हूं । मैंने पाया है कि आज मात्र ५ % स्त्रियोंमें पाक कलाका गुण रह गया है, आजकी अनेक स्त्रियां अंतर भोजन करके उदर भरण करना है, यहांतक ही उनकी यह कला सीमित रह गई है ! इस विकृतिमें विज्ञानद्वारा सुविधाएं उपलब्ध करवाकर देना व पाश्चात्योंकी होटल संस्कृतिने सबसे अधिक योगदान दिया है । कलसे आपको इस विषयमें जो मैंने अपने श्रीगुरु, अपनी माताजी, नानीजी एवं अन्य कुछ कुशल गृहिणियोंसे अभीतक सीखा है, वह सात्त्विकता, आयुर्वेद एवं पाक कलाकी दृष्टिसे बतानेका प्रयास करुंगी ।



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