आपको पिछले लेखमें बताया था कि रोटीको मुलायम बनाने हेतु आटेको गूंदकर उसे ढककर दससे बीस मिनिट तक रखें इसके पश्चात ही रोटी बनाएं; किन्तु इसी आटेको अधिक देरतक न रखें | कई घरोंमें महिलाएं आलसके कारण सम्पूर्ण दिवसमें लगनेवाले आटेको गूंदकर उसे प्रशीतकमें (फ्रिजमें) रख देती हैं या जो आटा, रोटियां बनानेके पश्चात बच गया हो उसे भी अगले दिवस हेतु प्रशीतकमें रख देती हैं; किन्तु ऐसा करना शारीरिक दृष्टि एवं आध्यात्मिक दृष्टिसे अर्थात दोनों ही दृष्टिसे अनुचित होता है ! वैज्ञानिक शोधोंसे ज्ञात हुआ है कि जिस आटेको हम गूंदकर कुछ घंटे रख देते हैं, उसमें पौष्टिक तत्त्व तो कम हो ही जाते हैं, साथ ही उसमें रोग उत्पन्न करनेवाले घटक उत्पन्न होने लगते हैं ! हमारे यहां बासी भोजनको तामसिक माना गया है और साथ ही गूंदे हुए आटेको यदि कुछ घंटे रख दें तो उसके सूक्ष्म गन्धसे आस-पासकी अतृप्त सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियां आकर्षित होकर उसका गन्ध लेकर अपनी वासना शान्त करती हैं, इससे वह आटा रज-तमसे दूषित हो जाता है; इसलिए सर्वोत्तम तो यह होगा कि आपको जितना चाहिए उतना ही आटा गूंदे और यदि अधिक आटा गूंद लेते हैं तो उसकी रोटी या पराठा बनाकर रख लें; उसे यदि स्वयं नहीं खा सकते हैं तो किसीको दे दें; किन्तु गूंदा हुआ आटा कभी भी न रखें और न ही उसकी रोटी या पराठा बनाकर खायें | दो पैसे बचानेके स्थानपर स्वयंको रोगीकर या अनिष्ट शक्तियोंसे आवेशितकर आप और अधिक पैसेका भविष्यमें व्यय करेंगी, यह ध्यान रखें !
भारतके कुछ स्थानोंपर विशेषकर पंजाब या उत्तर भारतके कुछ भागोंमें भटूरे या कुलचे बनानेकी पद्धति है; किन्तु यह आटेको कृत्रिम रूपसे सडाकर, जिसे अंग्रेजीमें ‘फर्मेंट’ करना कहते हैं, उससे बनाया जाता है ! वैसे ही ब्रेड, पिज्जा, बर्गर इन सभीको बनाने हेतु आटाको सडाना (फर्मेंट करना) आवश्यक होता है | ऐसे सभी खाद्य पदार्थ तमोगुणी होते हैं और इनसे उदर रोग होते हैं | ऐसे खाद्य पदार्थ खानेके कारण ही आज भारतमें उदर रोगका प्रमाण बहुत अधिक बढ गया है ! यह सब अहिंदुओंकी तामसिक भोजन पद्धति है जो कालान्तरमें धर्मशिक्षणके अभावमें हिन्दुओंने अपनी जिह्वाकी तृप्ति हेतु विदेशियोंसे आत्मसात कर लिया है !
जब हम भगवानजीको नैवेद्य चढाते हैं तो ऐसे भोजन कभी भी नहीं चढाते; अर्थात इससे सिद्ध होता है कि ये भोजन सात्त्विक नहीं होते हैं ! यदि आप सात्त्विक भोजन करेंगे तो आपका शरीर, मन और बुद्धि, सभी सात्त्विक रहेंगे, इससे आपके जीवनमें रोग-शोक-क्लेश सभी न्यून हो जाएंगे और आप अधिक सुखी व समृद्ध तो रहेंगे ही, साथ ही आप धर्म एवं साधनाकी ओर सहजतासे उन्मुख होंगे; क्योंकि अन्नका हमारे जीवनपर बहुत अधिक प्रभाव पडता है, कहा भी गया है कि ‘जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन’ !
साथ ही जब आप प्रतिदिनकी रोटियां बनाने हेतु आटा निकालती हैं तो एक पात्र दानके लिए निकालनेवाले अन्न हेतु रखें ! आप जितना आटा रोटी बनानेके लिए निकालती हैं, उसमेंसे पएक मुट्ठी दानके लिए निकालकर रखें, उसके पश्चात ही अपने लिए आटा गूंदे ! आज प्राचीन काल समान अन्नपर उचित संस्कार नहीं होते हैं और गृहस्थ पञ्चमहायज्ञ भी नहीं करता है; इसलिए उसका अन्न भी दूषित हो जाता है !
दान पात्रमें निकाले हुए आटेको प्रत्येक सप्ताह योग्य पात्रको दान करें | इससे आपके घरमें अन्नकी कभी भी कमी नहीं होगी, यही सिद्धांत जो लोग चावल प्रतिदिन खाते हैं, उनपर भी लागू होता है ! आजकल अनेक लोगोंको ऐसे रोग होते हैं कि भोजन उपलब्द्ध होनेपर भी वे उसे ग्रहण नहीं कर सकते हैं, इसका मूल कारण होता है कि वे दूषित अन्न ग्रहण करते हैं ! ध्यान रखें, ईश्वरद्वारा आपको प्रेषित अन्नके एक अंशपर इस ब्रह्माण्डके अन्य जीवोंका भी अधिकार होता है, जब आप ऐसा नहीं करते हैं तो आप दण्डके पात्र बनते हैं ! पूर्वके कालमें सभी घरोंमें ऐसा होता था, कालान्तरमें हम स्वार्थी होते चले गए और इसी वृत्तिके कारण सुखके स्थानपर रोग एवं क्लेशने हमारे घरपर स्थान बना लिया ! इसलिए ये छोटी-छोटी बातें आपके जीवनको सुखी बनाए रखने हेतु अति आवश्यक होते हैं !
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