जनवरी ११, २०१९
सादगीकी प्रतिमूर्ति और काशीके लाल कहे जानेवाले देशके पूर्व प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्रीके शवपरीक्षणका विवरण (पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट) भारत शासनके पास नहीं हैं ! यह प्रकटीकरण प्रधानमन्त्री कार्यालयने एक ‘आरटीआई’के उत्तरमें किया है । चंदौलीके संतोष कुमार पाठककी ओरसे लाल बहादुर शास्त्रीकी ११ जनवरी १९६६ को ताशकंदमें हुई मृत्युके कारणोंको जाननेके लिए जांच विवरण मांगा था, उत्तरमें ‘पीएमओ’ने यह जानकारी दी !
पाठकका कहना है शास्त्रीजीकी मृत्युका रहस्य उजागर करनेके लिए उन्होंने यह ‘आरटीआई’ प्रविष्ट की थी; परन्तु इस प्रकरणमें ‘पीएमओ’की ओरसे मिली सूचनाके पश्चात उनके हाथ निराशा लगी है ।
पाकिस्तानसे १९६५ के युद्दके पश्चात जब रूसके ताशकंदमें दोनों देशोंके प्रधानमन्त्री सन्धिके लिए पहुंचे, तब उसी रातको लाल बहादुर शास्त्रीकी मृत्यु हो गई ! जिस रात उनकी मृत्यु हुई, उस रात भोजनके समयतक वह एकदम स्वस्थ थे ।
पाठकने कहा, ‘हमने पुस्तकोंमें पढा था कि शास्त्रीजीको उस रात उनके साथ गए घरेलू चाकर और रसोइयेके स्थानपर रूसमें भारतके राजदूत व नेहरू परिवारके अत्यन्त निकट रहे टीएन कौलने भोजन करवाया था ।’ बादमें शास्त्रीजीके रसोइये जान मुहम्मदको केजीबीने (रूसका जांच विभाग) भोजनमें विष मिलानेकी शंकामें पकडा भी था, एकाएक वह जांच बंद कर दी गई । उनका कहना है कि शास्त्रीजीकी मृत्युके पीछे अब मुझे राजनीतिक षड्यन्त्रकी बात इसीलिए और अधिक सही लगती है; क्योंकि भारतके पास उनकी जांच विवरण तक नहीं है !
“शास्त्रीजीकी मृत्युकी जांच न करवाना केवल कांग्रेस नेताकी कुर्सीकी महत्वकांक्षा ही थी, अन्यथा एक बालक भी बता सकता था कि शास्त्रीजीको विष दिया गया था । समस्त सत्यनिष्ठ क्रान्तिकारियोंका निधर्मी राजनेताओंने यही स्थिति की है, फिर वह शास्त्रीजी हो, या सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु हो या नाथूराम गोडसे, सबके सब निधर्मी व स्वार्थी राजनीतिकी बलि चढे, जिसका परिणाम यह है कि आज भारत अनेक भागोंमें विभाजित हो चुका है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : नभाटा
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