एक व्यापारी एक ग्राममें प्रतिदिन जाता था । उस ग्राममें एक किसान प्रतिदिन एक सेर घृत(घी) उस व्यापारीको विक्रय करता था । एक दिन व्यापारीने ने विचार किया -“मैं नित्य इस किसानपर विश्वास करके बिना तोले घी ले लेता हूं, क्यों न आज घीको तोल कर देखूं जिससे कि मुझे भी ज्ञात हो सके कि घीका तोल उचित प्राप्त हो रहा है कि नहीं ?”
व्यापारीने ऐसा सोच कर घी तोला । तोलनेपर घी भारमें कम निकला । व्यापारीको किसानपर अत्यंत क्रोध आया । उसने किसानपर न्यायालयमें वाद प्रस्तुत किया । किसानको न्यायालयमें बुलाया गया । न्यायाधीशने किसानसे पूछा कि क्या वह तोलनेके लिए किसी इकाईका (बाटका) उपयोग करता है । किसानने उत्तर दिया-“मेरे पास बाट तो नहीं है, परंतु मैं तोल लेता हूं ।“ न्यायाधीशने विस्मयसे पूछा-“ तुम्हारे पास बाट नहीं है ! तो बिना बाटके घी कैसे तोल लेते हो ?” इसपर किसानने उत्तर दिया कि वह दीर्घ अवधिसे प्रतिदिन उस व्यापारीसे एक सेर कोई न कोई गृहोपयोगी वस्तु क्रय करता है । प्रतिदिन जब वह व्यापारी मुझे वस्तु देकर जाता है, तो मैं उतने ही भारका (वजनका) घी उसे तोल कर दे देता हूं । यह सुनकर व्यापारी चकित रह गया !!!
इस प्रसंगका तात्पर्य यह है कि हम जो दूसरोंको देते हैं वही हमें पुनः मिलता है । जब हम दूसरोंके साथ अच्छा या बुरा वर्तन करते हैं तो उसी व्यवहारकी हमारे साथ भी पुनरावृत्ति होती है । हमारे यहां एक अत्यंत प्राचीन कहावत है कि ‘बोया पेड बबूलका तो आम कहां से होय।’ अत: अपने वर्तनमें शालीनता, आत्मीयता, वाणीमें सौम्यता, आंतरिक विनम्रता (विनम्रताका आवरण न हो) जैसे दिव्य गुण आत्मसात् कर उसे कृतिमें लाएं ।
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