प्रेरक कथा – सच्चे मन, लगनसे ही लक्ष्यकी प्राप्ति !


एक बार सूर्यवंशी राजा दिलीपके पुत्र भगीरथ हिमालयपर तपस्या कर रहे थे । वे गंगाको धरतीपर लाना चाहते थे। उनके पूर्वज कपिल मुनिके शापसे भस्म हो गए थे । मां गंगा ही उनका उद्धार कर सकती थी । भगीरथ अन्न-जल त्यागकर तपस्या कर रहे थे ।
मां गंगा उनकी कठोर तपस्यासे प्रसन्न हो गई । भगीरथने धीमे स्वरमें गंगाकी ध्वनि सुनी । “महाराज ! मैं आपकी इच्छानुसार धरतीपर आनेके लिये तत्पर हूं; परन्तु मेरी तीव्र धाराको धरतीपर रोकेगा कौन ? यदि वह रोकी न गई तो धरतीके स्तरोंको तोडती हुई पाताल लोकमें चली जाएगी ।”
भगीरथने उपाय पूछा तो गंगाने कहा, “महाराज भगीरथ ! मेरी प्रचण्ड धाराको केवल शिव रोक सकते हैं । यदि वे अपने शीशपर मेरी धाराको रोकनेके लिए मान जाएं तो मैं पृथ्वीपर आ सकती हूं । भगीरथ शिवकी अराधनामें लग गए । तपस्यासे प्रसन्न हुए शिव गंगाकी धाराको शीशपर रोकनेके लिए सज्ज हो गए ।
       ज्येष्ठ माहके शुक्ल पक्षके दशहरेके दिवस जटा खोलकर, कटिप्रदेशपर (कमरपर) हाथ रखकर खडे हुए शिव अपलक नेत्रोंसे ऊपर आकाशकी ओर देखने लगे । गंगाकी धार हर-हर करती हुई स्वर्गसे शिवके मस्तकपर गिरने लगी । जलकी एक भी बूंद पृथ्वीपर नहीं गिर रही थी । सारा जल जटाओंमें समा रहा था ।
     भगीरथके प्रार्थना करनेपर शिवने एक जटा निचोडकर गंगाके जलको धरतीपर गिराया । शिवकी जटाओंसे निकलनेके कारण गंगाका नाम जटाशंकरी पड गया ।
गंगाके मार्गमें जह्नु ऋषिकी कुटिया आई तो धाराने उसे बहा दिया । क्रोधित हुए मुनिने योग शक्तिसे धाराको रोक दिया । भगीरथने प्रार्थनाकी तो ऋषिने गंगाको मुक्त कर दिया । अब गंगाका नाम जाह्नवी हो गया ।
     कपिल मुनिके आश्रममें पहुंचकर गंगाने भगीरथके महाराज सगर आदि पूर्वजोंका उद्धार किया । वहांसे गंगा बंगालकी खाडीमें समाविष्ट हुई, उसे आज गंगासागर कहते है ।
अतः सच्चे मन, लगन और एक लक्ष्यके साथ किया गया कार्य प्रत्येक बाधाओंको तोडकर सफल होता है एवं हमें सदैव ही आगे बढनेके लिए प्रेरित करता है ।


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