प्रेरक प्रसंग – क्यों हनुमानजीने भीमको दिए अपने शरीरके तीन बाल ?
पांडवोंने श्रीकृष्णकी सहायतासे कौरवोंपर विजय प्राप्त कर ली थी । अब हस्तिनापुरका राज्य पांडवोंके अधीन था । धर्मराज युधिष्ठर राजा बने थे । न्याय और धर्मकी प्रतिमूर्ति महाराज युधिष्ठरके राज्यमें सब कुशल मंगल था । समस्त हस्तिनापुर आनंदमयी जीवन व्यतीत कर रहा था । कहीं भी किसी प्रकारका दुःख न था । एक दिन नारद मुनि राजा युधिष्ठरके पास आए और कहा कि महाराज आप यहां वैभवशाली जीवन जी रहे हैं; परन्तु वहां स्वर्गमें आपके पिता बडे ही दुखी हैं । युधिष्ठरने नारद मुनिसे पिताके दुखी होनेका कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पाण्डुका सपना था कि वो राज्यमें एक “राजसूय यज्ञ” कराएं; परन्तु वे अपने जीवन कालमें नहीं करा पाए, बस इसी बातसे दुःखी हैं ।
तब युधिष्ठरने अपने पिताकी शांतिके लिए राजसूय यज्ञ करनेका निर्णय लिया । इस यज्ञमें वो ऋषि पुरुष मृगाको बुलाना चाहते थे । ऋषि पुरुष मृगा भगवान शिवके परम भक्त थे, उनका ऊपरका भाग पुरुषका था और नीचेका भाग मृगा (हिरन)का, इसलिए उनका नाम पुरुष मृगा था ।
युधिष्ठरने अपने छोटे भाई भीमको आज्ञा दी कि वह ऋषि पुरुष मृगाको ढूंढकर लाएं ताकि यज्ञ संपन्न हो सके। भीम, भाईकी आज्ञा पाकर ऋषि पुरुष मृगाको ढूंढने चल दिए । एक जंगलसे निकलते हुए भीमको पवन पुत्र हनुमान दिखाई दिए । चूंकि भीम भी पवन (वायु)के पुत्र थे तो इस नाते हनुमान और भीम दोनों भाई हुए । हनुमानजीने अपने छोटे भाई भीमको अपने शरीरके तीन बाल दिए और कहा ये बाल तुमको विपत्तिसे बचानेमें सहायता करेंगे ।
बहुत दूर भटकनेके बाद भीमने आखिर ऋषि पुरुष मृगाको ढूंढ ही लिया वो उस समय भगवान शिवका ध्यान लगाए बैठे थे । भीमने जब उन्हें राजसूय यज्ञमें चलनेकी बात कही तो वो तैयार हो गए; परन्तु उन्होंने भीमके समक्ष एक अहर्ता (शर्त) रखी । अहर्ता यह थी कि भीमको हस्तिनापुर ऋषि पुरुष मृगासे पहले पहुंचना था । यदि पुरुष मृगा भीमसे पहले हस्तिनापुर पहुंच गए तो वे भीमको खा जाएंगे । अब चूंकि ऋषि पुरुष मृगाका निचला हिस्सा हिरनका था तो वे बहुत तीव्र गतिसे दौडते थे ।
भीमने साहस करके उनकी यह अहर्ता स्वीकार कर ली । भीमने तुरंत तेजीसे हस्तिनापुरकी ओर दौडना आरम्भ कर दिया । भीमने अचानक पीछे मुडकर देखा तो पाया ऋषि पुरुष मृगा उनके बिलकुल समीप आ चुके हैं । घबराए हुए भीमको अचानक हनुमानजीद्वारा दिए हुए तीन बालोंका स्मरण हो आया ।
भीमने एक बाल धरापर फेंक दिया । तुरंत उस बालकी शक्तिसे बहुत सारे शिवलिंग जमीनपर उत्पन्न हो गए । ऋषि पुरुष मृगा भगवान शिवके भक्त थे; इसलिए अब वो प्रत्येक शिवलिंगको पूजते हुए आगे बढ रहे थे जिससे उनकी चाल धीमी पड गयी ।
थोडी देर पश्चात भीमने पुन: दूसरा बाल फेंका तो पुनः बहुत सारे शिवलिंग उत्पन्न हो गए। इसीप्रकार भीमने ऋषि पुरुष मृगाको पीछे रखनेके लिए एक एक कर तीनों बाल फेंक दिए; लेकिन जैसे ही भीम महलमें घुसने ही वाले थे तभी पुरुष मृगाने उनके पांव पीछेसे खींच लिए और भीमके पांव महलसे बाहर ही रह गए ।
अब पुरुष मृगा भीमको खानेके लिए जैसे ही आगे बढे; तुरंत वहां राजा युधिष्ठिर और भगवान कृष्ण आ गए । तब ऋषि पुरुष मृगाने युधिष्ठरसे कहा कि अब आप ही न्याय करें।
राजा युधिष्ठरने अपना निर्णय सुनाया कि भीमके पांव ही महलसे बाहर रहे थे इसलिए आप भीमके केवल पैर खा सकते हैं । युधिष्ठरके इस न्यायसे पुरुष मृगा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने भीमको जीवन दान दिया । इसके पश्चात राजसूय यज्ञ आनन्दपूर्वक संपन्न हुआ ।
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