प्रेरक प्रसंग – तीन मछलियां


एक जलाशयमें पिया, रिया और चिया नामक तीन मछलियां रहती थी | वे आपना जीवन जलमें क्रीडाकर व्यतीत कर रही थीं | एक दिवस कुछ मछुआरे उस जलाशयपर आए और देखकर कहने लगे कि यहां बहुत मछलियां हैं |
कल यहां जाल बिछाएंगें |
इस प्रकार मछुआरे दूसरे दिनका कार्यक्रम तय करके चले गए । तीनों मछलियोंने मछुआरेकी बात सुन ली थी।
पिया मछलीने कहा, “साथियों ! तुमने मछुआरेकी बात सुन ली । अब हमारा यहां रहना उचित नहीं हैं। संकटकी सूचना हमें मिल गई हैं । समय रहते अपनी जान बचानेका उपाय करना चाहिए । मैं तो अभी ही इस जलाशयको छोडकर नहरके रास्ते नदीमें जा रही हूं । उसके पश्चात मछुआरे सुबह आएं, जाल फेंके, मेरी बलासे । तब तक मैं तो बहुत दूर अठखेलियां कर रही होऊंगी”।
रिया मछली बोली, “तुम्हें जाना हैं तो जाओ, मैं तो नहीं आ रही। अभी संकट आया कहां हैं, जो इतना घबरानेकी आवश्यकता हैं । हो सकता है संकट आए ही न । उन मछुआरोंका यहां आनेका कार्यक्रम स्थगित हो सकता है, हो सकता हैं रात्रिको उनके जाल चूहे कुतर जाएं, हो सकता है उनकी बस्तीमें आग लग जाए । भूचाल आकर उनके गांवको नष्ट कर सकता हैं या रात्रिको मूसलाधार वर्षा आ सकती हैं और बाढमें उनका गांव बह सकता है । इसलिए उनका आना निश्चित नहीं है । जब वह आएंगे, तबकी तब सोचेंगे । हो सकता है मैं उनके जालमें ही न फंसूं”।
चियाने भाग्यवादी बात कही भागनेसे कुछ नहीं होगा । मछुआरोंको आना है तो वह आएंगे। हमें जालमें फंसना है तो हम फंसेंगे । भाग्यमें मरना ही लिखा है तो क्या किया जा सकता है?
इस प्रकार पिया तो उसी समय वहांसे चली गई । रिया और चिया जलाशयमें ही रही । भोर हुई तो मछुआरे अपने जालको लेकर आए और लगे जलाशयमें जाल फेंकने और मछलियां पकडने । रियाने संकटको आया देखा तो लगी जान बचानेके उपाय सोचने । उसका मस्तिष्क तीव्रतासे कार्य करने लगा । आस-पास छिपनेके लिए कोई खाली स्थान भी नहीं थी । तभी उसे स्मरण आया कि उस जलाशयमें बहुत दिनोंसे एक मरे हुए ऊदबिलावकी शव तैर रहा हैं । वह उसके बचावके कार्य आ सकता है ।
जल्दी ही उसे वह शव मिल गया । शव सडने लगा था । रिया शवके पेटमें घुस गई और सडती शवकी सडांध अपने ऊपर लपेटकर बाहर निकली । कुछ ही देरमें मछुआरेके जालमें रिया फंस गई । मछुआरेने अपना जाल खींचा और मछलियोंको किनारेपर जालसे उलट दिया । बाकी मछलियां तो तडपने लगीं; परन्तु रिया दम साधकर मरी हुई मछलीकी भांति पडी रही । मछुआरेको सडांधका भभका लगा तो मछलियोंको देखने लगा। उसने निर्जीव पडी रियाको उठाया और सूंघा आक ! यह तो कई दिनोंकी मरी मछली हैं । सड चुकी है । ऐसे बडबडाकर बुरा-सा मुंह बनाकर उस मछुआरेने रियाको जलाशयमें फेंक दिया ।
रिया अपनी बुद्धिका प्रयोगकर संकटसे बच निकलनेमें सफल हो गई थी । पानीमें गिरते ही उसने गोता लगाया और सुरक्षित गहराईमें पहुंचकर जान बचाई ।
चिया भी दूसरे मछुआरेके जालमें फंस गई थी और एक टोकरेमें डाल दी गई थी । भाग्यके भरोसे बैठी रहने वाली चियाने उसी टोकरीमें अन्य मछलियोंकी भांति तडप-तडपकर प्राण त्याग दिए ।
सीखः भाग्यके भरोसे हाथपर हाथ धरकर बैठे रहने वालेका विनाश निश्चित है । पियाकी भांति संकटका संकेत मिलते ही उपाय सोचना सबसे उत्तम है, रियाकी भांति संकट आनेपर मस्तिष्क लगाना भी उचित हो सकता है; परन्तु चियाकी भांति भाग्यके भरोसे रहना सबसे अधिक भयावह है ।


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