क्या आपको ज्ञात है कि राजा दशरथके दरबारमें ॠषि वसिष्ठ, महर्षि गौतम, महर्षि वामदेव, जाबाल ॠषि, कश्यप ॠषि, दीर्घायु मार्कण्डेयजी, ॠषि सुयज्ञ, महर्षि कात्यायन आदि अनेक ॠषि-मुनि मन्त्री पदपर विराजमान थे । इन ब्रह्मर्षियोंके साथ पूर्व परम्परागत ॠत्विज (ब्रह्मज्ञानी ) भी मन्त्रीका कार्य करते थे तथा सम्पूर्ण राज्यकी व्यवस्था इनके परामर्शसेकी जाती थी । वाल्मीकि रामायणमें इसका उल्लेख है; परंतु कुछ अज्ञानी एवं एकांगी साधना करनेवाले कहते हैं कि संतोंने राजनीतिमें प्रवेश नहीं करना चाहिए और धर्म और राजनीति दोनोंको अलग रखें !! राजनीतिका प्राण धर्म है, धर्मविहीन राजनीति राज्यकर्त्ताओंको नीतिशून्य और आदर्शशून्य बनाकर उन्हें असुर समान वर्तन करनेको प्रवृत्त करती है !-तनुजा ठाकुर
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