वर्तमान कालमें राज्यकर्ताओंको राजधर्म व साधनाका ज्ञान नहीं है, इसलिए उन्हें पांच वर्ष अपने सत्ताको बचाए रखने हेतु अनेक प्रपंच करने पडते हैं तत्पश्चात जब पुनः चुनाव आता है तो सत्ता पुनः प्राप्त होगी या नहीं ? यह शंका व्याप्त रहती है । यदि उन्हें राजधर्म सिखाया गया होता तो यह स्थिति कदापि निर्माण नहीं होती । हमारे धर्मशास्त्रोंमें राजा अपने किन गुणोंके कारण अधिक समय तक राजसत्ताका सुख प्राप्त कर सकता है, इसके विषयमें सुस्पष्ट रूपसे निम्नलिखित श्लोकमें बताया गया है ।
अप्रमत्तश्च यो राजा सर्वज्ञो विजितेन्द्रियः ।
कृतज्ञो धर्मशीलश्च स राजा तिष्ठते चिरम् ॥
अर्थ : जो राजा अप्रमत्त, सर्वज्ञ, जितेन्द्रिय, कृतज्ञ और धार्मिक है, वह लम्बे कार्यकालतक राज्य करता है ।
इस शास्त्र वचन अनुसार यह समझमें आता है कि मात्र सुखी रहने हेतु या जीवन्मुक्त होने हेतु ही नहीं; अपितु राजसुख अधिक समय पाने हेतु भी योग्य साधना एवं धर्मपालन करना चाहिए ।
Leave a Reply