रात्रिके समय विवाह करना अनुचित क्यों है ?


  • विवाहमें मुहूर्तका महत्त्वके बारेमें जानें  तथा इसका भी शास्त्र समझ लें  |
  • प्रातः ४ से ५ (ब्राह्ममुहूर्त, ब्राह्मकाल) : इस कालमें अस्त होनेवाली चंद्रमाकी तरंगें प्रखर ब्राह्मतेजके लिए तथा उदित होनेवाले अर्थात प्रकट होनेवाले सूर्यकी तेज-तरंगें शांत, संयमी क्षात्रतेजके लिए पूरक होती हैं । यह काल प्रखर ब्राह्मतेजके लिए पूरक होता है, इसलिए इसे ब्राह्ममुहूर्त कहते हैं ।
  • दोपहर ४ से ५ (गोरज काल, क्षात्रकाल) : किसी कारणवश सवेरेका मुहूर्त यदि छूट जाए, तो ही गोरज मुहूर्तपर विवाह करें । इस कालावधिमें अस्त होते सूर्यसे प्रक्षेपित तेजतरंगें प्रखर क्षात्रतेजके लिए पूरक हैं, जबकि उदित होते चंद्रसे प्रक्षेपित तरंगें शीतल, संयमी एवं शांत रहती हैं, अतः ब्राह्मतेजके लिए पूरक हैं । यह काल क्षात्रतेजके लिए पूरक रहता है, इसलिए इस कालमें अनिष्ट शक्तियोंके कष्टकी आशंका अल्प रहती है । प्राचीनकालमें अधिकांश क्षत्रियोंके विवाह गोरज मुहूर्तपर होते थे
  • दोपहर ५ के उपरांत (कातर काल) : यथासंभव संध्याकालमें अथवा रातमें बहुत देरसे विवाह न करें, क्योंकि इस कालमें अनिष्ट शक्तियोंके कष्टकी आशंका रहती है ।


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