जम्‍मू-कश्‍मीरके ‘जमात-ए-इस्लामी’के थे ‘आइएसआइ’ और पाकिस्तानी उच्चायोगसे सम्बन्ध, मदरसोंसे सज्ज हो रहे थे आतंकी !!


मार्च ८, २०१९


गत दिवसोंमें प्रतिबन्धित और जम्मू-कश्मीरमें सक्रिय संगठन ‘जमात-ए-इस्लामी’ जम्मू कश्मीरका पाकिस्तानके गुप्तचर विभाग ‘आईएसआई’के साथ गहरा सम्पर्क बना हुआ था और वे लोग देहलीमें कार्यरत पाकिस्तानके उच्चायोगके साथ सतत सम्पर्क बनाए हुए थे, ताकि वे राज्यमें पृथकतावादको बढावा दे सके । अधिकारियोंने यह जानकारी दी । हुर्रियत कांफ्रेंसमें ‘जमात-ए-इस्लामी’के सबसे महत्वपूर्ण सदस्य सैयद अली शाह जिलानी हैं । एक समयमें प्रतिबंधित संगठन उन्हें जम्मू कश्मीरके ’अमीर-ए-जिहाद’ (जिहादका प्रमुख) कहता था ।

एक वरिष्ठ अधिकारीने यह जानकारी दी कि इस संगठनने पाकिस्तानकी ‘इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस’के (आईएसआई) साथ गहन सम्बन्ध बना लिए थे, ताकि वह कश्मीरी युवाओंको शस्त्र उपलब्ध कराने, प्रशिक्षण देने और शस्त्र आपूर्तिके लिए सामान उपलब्ध करा सके । उसके नेता पाकिस्तानके उच्चायोगमें सम्पर्क बनाए हुए थे ।

गुप्तचर विभागके सूत्रोंके अनुसार, ‘जमात-ए-इस्लामी’ अपने विद्यालयके ‘नेटवर्क’का प्रयोग करके कश्मीर घाटीके बच्चोंमें भारत विरोधी भावनाएं भरने और प्रसारित करनेका काम करती थी । वह अपने संगठनकी छात्र शाखाके (जमीयत-उल-तुल्बा) सदस्योंको ‘जिहाद’ करनेके लिए आतंकी संगठनोंमें जानेके लिए प्रोत्साहित करती थी ।

अधिकारीने बताया कि यह अचम्भित करनेवाली बात नहीं है कि घाटीमें आतंकवादके ढांचेका ‘जमात’के कट्टर कार्यकर्ताओंके साथ गहन सम्बन्ध दिखता है ।

इस संगठनसे जुडे कई संगठन हैं, जो पुरातनपंथी इस्लामी शिक्षाको प्रसारित करनेके लिए विद्यालय चलाते हैं । इसकी एक युवा शाखा है और वह अपनी दक्षिणपन्थी विचारधारा प्रसारित करनेके लिए कईप्रकारके प्रकाशन भी करती है । यह संगठन १९४५ में ‘जमात-ए-इस्लामी हिंद’के एक भागके रूपमें बनाया गया और राजनीतिक विचारधारामें आए मतभेदोंके चलते १९५३ में यह संगठन उससे पृथक हो गया । यह चुनाव प्रक्रियामें भाग लेनेका विरोध करती है और विधिद्वारा स्थापित शासनको अस्थिर करनेका प्रयास करता है ।

‘जमात’ पाकिस्तानसे संचालित ‘हिज्बुल मुजाहिदीन’के भयका दुरुपयोग करती थी और अपने सदस्यों और संगठनके धनकी सहायतासे काम चलाती थी, ताकि भूमिगत स्तरपर उसकी पकड बनी रहे । इससे वह कश्मीर घाटीमें आतंकी संगठनोंके लिए उर्वर भूमि उपलब्ध कराती थी और उनकी सहायताके लिए प्रोत्साहन देने, नूतन सदस्य भर्ती करने, आश्रय और छिपनेका स्थान और ‘कूरियर’का कार्य करती थी ।

एक अन्य अधिकारीने बताया कि ‘जमात’के कट्टरपंथी पृथकतावादी तत्त्वोंके अग्रिम मोर्चेकी भांति कार्य करते थे और ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस’के गठन और साथ ही ‘हिज्बुल मुजाहिदीन’के पीछे उनका ही मस्तिष्क कार्यरत था । इसके अतिरिक्त ये कट्टरपंथी आतंकी समूहोंके साथ मिलकर पृथकतावादी गतिविधियोंको बढावा देनेका कार्य भी करते थे ।

इसके सम्बन्ध विदेशोंमें भी प्रसारित हुए थे, जहांसे ये धनकी व्यवस्था भी करती थी । इसके सम्बन्ध ‘जमात-ए-इस्लामी’ पाकिस्तान, ‘जमात-ए-इस्लामी पीओके’, ‘जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश’के साथ थे । यह घाटीमें धार्मिक वैमनस्य भी प्रसारित करती थी, ताकि इस्लाम धर्मके उदारवादी पन्थोंके साथ तनाव उत्पन्न हो सके ।

केन्द्र शासनने २८ फरवरीको इस संगठनको प्रतिबन्धित कर दिया था; परन्तु इससे पूर्व इस संगठनको दो बार प्रतिबन्धित किया जा चुका है । प्रथम बार १९७५ में राज्य शासनने दो वर्षोंके लिए और दूसरी बार १९९० केंद्र शासनने तीन वर्षोंके लिए प्रतिबन्ध किया था ।

 

“ ‘आइएसआइ’, जो आतंकका मुख्य बिन्दू है, ‘जमात’ उससे सम्पर्कमें था और वे लोग देहली स्थित पाकिस्तान उच्चायोग, जिसे हम सशस्त्र सैनिकों सहित सुरक्षा प्रदान करते हैं, उसके सम्पर्कमें था, क्या यह एक उपहास है या सत्य ? पाकिस्तान उच्चायोग भारतमें हमारी सुरक्षाके आधीन रहकर ‘आइएसआइ’ और जमातकेद्वारा मदरसोंमें आतंकी सिद्ध कर रहा है और वे बच्चे पत्थरबाज बनकर अथवा ‘एएमयू’में प्रवेश पाकर आतंक प्रसारित करते हैं, क्या इसकी भनक हमारे गृह मन्त्रालय और सुरक्षा विभागको नहीं लगी ? यह हिन्दुस्तान किस ओर जा रहा है और जिस आतंकी संगठन ‘जमात’को दो बार प्रतिबन्धित किया जा चुका है, उससे पुनः प्रतिबन्ध क्यों हटाया गया ?, कांग्रेस इसका उत्तर देशको दे !  !! महबूबा मुफ्ती, जो इसके विरोधमें थीं, इसपर राष्ट्रको उत्तर दें कि क्यों उन्होंनें इसका विरोध किया व शासन भी इसपर जांच करे ? और अब इसपर अन्तिम कार्यवाहीकर इस संगठनके मूलको नष्ट करे; क्योंकि शासन तो आते-जाते रहेंगें और यदि और किसी औरका शासन आया तो इसका पुनः उदय किया जाएगा और साथ ही भारतमें बैठे उन आतंकी समर्थक उच्चायोगके सदस्योंको पुनः पाकिस्तान भेजे, यह सभी राष्ट्रनिष्ठोंकी मांग है ”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : जी न्यूज



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