ऋषियोंकी सङ्ख्या सात ही क्यों ?


प्रत्येक कालमें भिन्न-भिन्न सप्तर्षि रहे हैं ।आकाशमें ७ तारोंका एक मण्डल दिखाई देता है, जिन्हें सप्तर्षियोंका मण्डल कहा जाता है । इसके अतिरिक्त सप्तर्षिसे उन ७ तारोंका बोध होता है, जो ध्रुव तारेकी परिक्रमा करते हैं । उक्त मण्डलके तारोंके नाम भारतके ७ महान सन्तोंके आधारपर ही रखे गए हैं । वेदोंमें उक्त मण्डलकी स्थिति, गति, दूरी एवं विस्तारकी विस्तृत चर्चा मिलती है ।

ऋषियोंकी सङ्ख्या सात ही क्यों ?
॥ सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:
कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश: ॥
अर्थात :
१. ब्रह्मर्षि
२. देवर्षि
३. महर्षि
४. परमर्षि
५. कण्डर्षि
६. श्रुतर्षि एवं
७. राजर्षि
ये ७ प्रकारके ऋषि होते हैं; इसलिए इन्हें सप्तर्षि कहते हैं ।

भारतीय ऋषियों एवं मुनियोंने ही इस पृथ्वीपर धर्म, समाज, नगर, ज्ञान, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, वास्तु, योग आदि ज्ञानका प्रचार-प्रसार किया था । सम्पूर्ण विज्ञानके सभी क्षेत्रोंको भारतीय ऋषियोंका ऋणी होना चाहिए तथा उनके योगदानको स्मरण किया जाना चाहिए । उन्होंने मानव मात्रके लिए ही नहीं; अपितु पशु-पक्षी, समुद्र, नदी, पहाड एवं वृक्ष सभीके विषयमें सोचा तथा सभीके सुरक्षित जीवन हेतु कार्य किया ।
आइए, संक्षिप्तमें जानते हैं कि किस कालमें कौनसे ऋषि थे ?
भारतमें ऋषियों एवं गुरु-शिष्यकी लम्बी परम्परा रही है । ब्रह्माके पुत्र भी ऋषि ही थे, तो भगवान शिवके शिष्यगण भी ऋषि ही थे । प्रथम मनु स्वायंभुव मनुसे लेकर बौद्धकालतक ऋषि परम्पराके विषयमें जानकारी मिलती है । हिन्दू पुराणोंने कालको मनवन्तरोंमें विभाजितकर प्रत्येक मन्वन्तरमें हुए ऋषियोंके ज्ञान एवं उनके योगदानको परिभाषित किया है । प्रत्येक मन्वन्तरमें प्रमुख रूपसे ७ प्रमुख ऋषि हुए हैं ।

विष्णु पुराणके अनुसार इनकी नामावली इस प्रकार है :
१. प्रथम स्वायंभुव मन्वन्तरमें – मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु तथा वसिष्ठ
२. द्वितीय स्वारोचिष मन्वन्तरमें – ऊर्ज्ज, स्तम्भ, वात, प्राण, पृषभ, निरय तथा परीवान
३. तृतीय उत्तम मन्वन्तरमें – महर्षि वसिष्ठके सातों पुत्र
४. चतुर्थ तामस मन्वन्तरमें – ज्योतिर्धामा, पृथु, काव्य, चैत्र, अग्नि, वनक तथा पीवर
५. पञ्चम रैवत मन्वन्तरमें – हिरण्यरोमा, वेदश्री, ऊर्ध्वबाहु, वेदबाहु, सुधामा, पर्जन्य तथा महामुनि
६. षष्ठ चाक्षुष मन्वन्तरमें – सुमेधा, विरजा, हविष्मान, उतम, मधु, अतिनामा तथा सहिष्णु
७. वर्तमान सप्तम वैवस्वत मन्वन्तरमें – कश्यप, अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि तथा भारद्वाज

भविष्य पुराणके अनुसार नामावली इस प्रकार है :
१. अष्टम सावर्णिक मन्वन्तरमें – गालव, दीप्तिमान, परशुराम, अश्वत्थामा, कृप, ऋष्यशृंग तथा व्यास
२. नवम दक्षसावर्णि मन्वन्तरमें – मेधातिथि, वसु, सत्य, ज्योतिष्मान, द्युतिमान, सबन तथा भव्य
३. दशम ब्रह्मसावर्णि मन्वन्तरमें – तपोमूर्ति, हविष्मान, सुकृत, सत्य, नाभाग, अप्रतिमौजा तथा सत्यकेतु
४. एकादश धर्मसावर्णि मन्वन्तरमें – वपुष्मान, घृणि, आरुणि, निःस्वर, हविष्मान, अनघ तथा अग्नितेजा
५. द्वादश रुद्रसावर्णि मन्वन्तरमें – तपोद्युति, तपस्वी, सुतपा, तपोमूर्ति, तपोनिधि, तपोरति तथा तपोधृति
६. त्रयोदश देवसावर्णि मन्वन्तरमें – धृतिमान, अव्यय, तत्त्वदर्शी, निरुत्सुक, निर्मोह, सुतपा तथा निष्प्रकम्प
७. चतुर्दश इन्द्रसावर्णि मन्वन्तरमें – अग्नीध्र, अग्नि, बाहु, शुचि, युक्त, मागध, शुक्र तथा अजित

इन ऋषियोंमेंसे कुछ कल्पान्त-चिरञ्जीवी, मुक्तात्मा तथा दिव्यदेहधारी हैं ।

शतपथ ब्राह्मणके अनुसार,
१. गौतम, २. भारद्वाज, ३. विश्वामित्र, ४. जमदग्नि, ५. वसिष्ठ, ६. कश्यप तथा ७. अत्रि सप्तर्षि माने गए हैं ।

महाभारतके अनुसार,
१. मरीचि, २. अत्रि, ३. अंगिरा, ४. पुलह, ५. क्रतु, ६. पुलस्त्य तथा ७. वसिष्ठ सप्तर्षि माने गए हैं ।

महाभारतमें राजधर्म तथा धर्मके प्राचीन आचार्योंके नाम इस प्रकार हैं :
बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज तथा आठवें आचार्य, गौरशिरस मुनि ।

कौटिल्यके अर्थशास्त्रमें इनकी सूची इस प्रकार है :
मनु, बृहस्पति, उशनस (शुक्र), भरद्वाज, विशालाक्ष (शिव), पराशर, पिशुन, कौणपदंत, वातव्याधि तथा बहुदंती पुत्र ।

वैवस्वत मन्वन्तरमें वसिष्ठ ऋषि हुए । उस मन्वन्तरमें उन्हें ब्रह्मर्षिकी उपाधि मिली । वसिष्ठजीने गृहस्थाश्रमका पालन करते हुए ब्रह्माजीके मार्गदर्शनमें सृष्टिवर्धन, रक्षा, यज्ञ आदिसे संसारको दिशाबोध दिया ।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution