साधक क्यों करे स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया ? (भाग – १३)


निर्विकल्प साधना करने हेतु एवं साधनाके मध्य बार-बार आनेवाले विकल्पोंके निर्मूलन हेतु करें अहम् और दोषोंके निर्मूलन प्रक्रिया

अनेक साधक साधना तो करना चाहते हैं, किन्तु अस्थिर वृत्तिके कारण वे साधनामें सातत्य नहीं रख पाते हैं । जैसे उपासनाके मार्गदर्शनमें कुछ ऐसे साधक साधनारत हैं, जो साधना करना चाहते हैं, किन्तु अपने अस्थिर वृत्तिके कारण उसमें सातत्य नहीं बना पाते हैं ।

जब मैंने इसके कारणपर चिंतन किया तो ज्ञात हुआ कि

१. ऐसे साधकोंमें अहंका प्रमाण अधिक होता है, यदि उनके अहंको किसी भी माध्यमसे किंचित मात्र भी ठेस पहुंचती है तो उन्हें साधक, ईश्वर या गुरु तत्त्वके प्रति विकल्प आने लगता है और वे साधना कुछ कालके लिए छोड देते हैं । जब उन्हें उनके अयोग्य दृष्टिकोण ध्यानमें दिलाए जाते हैं या उनके अहंकी पुष्टि हेतु कुछ तथ्य प्रोत्साहनके रूपमें बताये जाते हैं तो वे पुनः साधना आरम्भ करते हैं, किन्तु पुनः कुछ समय उपरान्त कोई प्रसंग निर्माण होनेपर वे साधना छोड देते हैं । यह उनसे बार-बार होता है । ऐसे सभी साधकोंको यह सूचित करना चाहेंगे कि अध्यात्म अहम् निर्मूलनका शास्त्र है और यदि आप अध्यात्ममें आगे जाना चाहते हैं तो गुरु या ईश्वर ऐसी परिस्थिति निर्माण करेंगे ही जिससे आपपर अहम् निर्मूलनकी प्रक्रिया हो और इस प्रक्रियामें आपमें अहं जितना अधिक होगा आपको कष्ट उतना ही अधिक होगा एवं जितना अहं कम होगा उतना ही कष्ट कम होगा | अतः अपने अहंको दूर करने हेतु अहंके लक्षणोंका अभ्यास कर उसे दूर करनेका प्रयास करें । मैंने पाया है कि ऐसे साधक मात्र साधनाके मध्यही नहीं अपितु व्यावहारिक जीवनमें भी अपने आस-पासके सभी व्यक्तियोंको अपने वर्तनसे दुखी करते हैं एवं स्वयं भी पीडामें तथा अवसादग्रस्त रहते हैं । ऐसे साधकोंको अत्यधिक मानसिक कष्ट होता है एवं अनेक बार वे भिन्न प्रकारके मनोरोगसे भी ग्रस्त होते हैं । ऐसे साधकोंको अनिष्ट शक्तियोंका भी अत्यधिक कष्ट होता है एवं वे अमावस्या और पूर्णिमाके समय तो लगभग प्रकट ही रहते हैं अर्थात उन्हें कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तियां उनपर पूर्णरूपेण हावी रहती हैं ।

२. उसीप्रकार कुछ साधक सब कुछ अपने मनके अनुसार सब करना चाहते हैं; उनमें आज्ञापालनका संस्कार या परेच्छा अनुसार वर्तन करनेका संस्कार होता ही नहीं है । साधना मनके विरुद्ध जानेकी प्रक्रिया है, ऐसेमें जब तक सबकुछ आपके मनके अनुसार होगा या आप सबकुछ अपने मनके अनुसार करेंगे तब तक आपकी आध्यात्मिक प्रगति नहीं हो रही है, यह ध्यान रखें । इसीलिए अपने मनके विरुद्ध जाना सीखें एवं मनके विरुद्ध घटित होनेवाले प्रसंगोंको सहज स्वीकार करना सीखें ।

३. ऐसे साधक अपनी दस चूकें स्वयं लिखकर सभीको बताते हैं, किन्तु यदि कोई उनकी एक भी चूक बता दे तो उसे कभी त्वरित स्वीकार नहीं करते हैं । जब तक आप विनम्र होकर दूसरोंकी बताई हुई चूकोंको स्वीकार नहीं करते, आप स्वयंको ‘साधक’ कह ही नहीं सकते हैं । ऐसे साधकोंने अपने आस-पासके व्यक्तियोंसे या सह-साधकोंसे अपनी चूकें पूछकर लेनी चाहिए एवं सर्वप्रथम उसे मौन होकर हामी भरकर स्वीकार करना चाहिए । उसके पश्चात् उन चूकोंका आत्मनिरीक्षण कर उसमें वह अंश मात्र भी कहां दोषी हैं क्या ?, या आदर्श स्थितिमें उनका वर्तन कैसा होना चाहिए ?, यह देखें ।

४. ऐसे साधक स्वयं अत्यधिक प्रतिक्रिया एवं क्रोध व्यक्त करते हैं, किन्तु वे स्वयंको अत्यन्त संवेदनशील मानते हैं; अतः वे स्वयं यह अपेक्षा रखते हैं कि उसके आस-पासके व्यक्तिने उन्हें कभी भी प्रतिक्रियात्मक या क्रोधसे कुछ भी नहीं बोलना चाहिए । आपसे कोई आदर्श वर्तन करे, इस हेतु आपको स्वयंका वर्तन आदर्श करना होगा, यह सरल सा सिद्धांत ध्यानमें रख स्वयंमें आवश्यक परिवर्तन करें ।

ऊपरकी श्रेणीके सभी साधकोंमें सदैव ही साधना, साधक, गुरु एवं ईश्वरके प्रति विकल्प आते ही रहता है । साधको ! आनेवाला काल विनाशकारी है, अतः विकल्पोंमें समय व्यर्थ कर अपना बहुमूल्य समय न गंवाएं एवं जैसा गुरु या ईश्वरको अपेक्षित हो वैसा परिवर्तन स्वयंमें लाएं । आपसे जो भी चूक हुई हो उस हेतु शरणागत होकर गुरु, ईश्वर या अपने ज्येष्ठ साधकोंसे क्षमायाचना करें एवं साधना पथपर आगे बढें ।

ऐसे साधकोंने नामजप, इत्यादि छोडकर सर्वप्रथम अपने दोषोंपर ध्यान देना चाहिए, अन्यथा आपके आध्यात्मिक प्रयत्नोंका कोई भी लाभ नहीं मिलेगा और व्यवहारमें जीवन दोषों और अहंके कारण क्लेशप्रद बना रहेगा, और अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट सदैव ही हावी रहेगा; इसलिए चाहे आध्यात्ममें द्रुत गतिसे प्रगति करनी हो या अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे मुक्त होना हो या सुखी व्यावहारिक जीवन व्यतीत करना हो, तो यह प्रक्रिया करें एवं जिन्हें कोई विशेष मनोरोग हो तो उन्हें मनोचिकित्सकसे भी सुझाव लेना चाहिए ।

*यदि आप इस प्रक्रियाको सीखने हेतु इच्छुक हैं तो आप हमारे व्हाट्सऐप्पके साधना गुटमें जुड सकते हैं । इस हेतु आप हमें नीचे दिए गए चलभाष क्रमांकपर अपना सन्देश भेज सकते हैं ।*



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