साधकको कोई अधिकार नहीं होता, मात्र कर्तव्य होता है । एक साधकका भाव कैसा होना चाहिए ? हमारा सब कुछ हमारे श्रीगुरुका है एवं श्रीगुरुका सर्वस्व मेरा नहीं, अपितु गुरुकार्य हेतु है; अतः उसपर व्यष्टि स्तरपर हमारा कोई अधिकार नहीं ! गुरु हमें जो भी देते हैं उसका सदुपयोग अपनी व्यक्तिगत स्वार्थसिद्धि हेतु नहीं अपितु गुरुकार्य हेतु करनेवाला साधक कहलाता है ! साधकका कोई अधिकार नहीं होता, मात्र कर्त्तव्य होता है !
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