एक साधकका भाव कैसा होना चाहिए ?


हमारा सब कुछ हमारे श्रीगुरुका है एवं श्रीगुरुका सर्वस्व मेरा नहीं अपितु गुरुकार्य हेतु है ! गुरु हमें जो भी देते हैं उसका सदुपयोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थसिद्धि हेतु नहीं अपितु गुरुकार्य हेतु करनेवाला साधक कहलाता है ! साधकका कोई अधिकार नहीं होता, मात्र कर्त्तव्य होता है ! साधक किसी भी परिस्थितिमें गुरु या ईश्वरसे कोई उपालम्भ (शिकायत) नहीं करता अपितु उस परिस्थितिको ईश्वरने कुछ सिखाने हेतु निर्माण किया है, ऐसा सोचता है; अतः प्रतिकूल परिस्थितियोंमें भी वह कृतज्ञताका भाव रखता है ! –तनुजा ठाकुर ( २६.३.२०१४)



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