साधक किसे कहते हैं ? (भाग – ९)


जब कोई स्वयंप्रेरित होकर नियमित तन, मन, धन, बुद्धि और अहंका त्यागकर, निष्काम भावसे मात्र ईश्वरीय कृपा सम्पादन करने हेतु अनेक वर्ष बिना किसी बाह्य प्रोत्साहनके साधना करता है तो उसे साधक कहते हैं । जबतक साधनाके इस मापदण्डमें उतार-चढाव आता रहे और उसे नियमित करने हेतु समय-समयपर प्रोत्साहन हेतु बौद्धिक मार्गदर्शन रुपी आधारकी आवश्यकता हो, तबतक वह स्वयंको साधक नहीं कह सकता !


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