कार्यपद्धतिका पालन करनेवाला
कार्यपद्धतिका पालन करना, धर्मपालन या कर्तव्यपालन करने समान ही है | सत्ययुगमें जबसे मनुष्य अपने कर्तव्यपालनमें कमी करने लगे, तभीसे राजाकी कल्पना आरम्भ हुई | क्या आपको ज्ञात है कि जबतक मनुष्य अपने कर्तव्योंका पालन स्वयं प्रेरित होकर करता था तबतक समाजमें राजाकी भी आवश्यकता नहीं थी ! तमोगुण बढनेसे जैसे ही मनुष्य अपने कर्तव्योंका पालन करनेमें चूकने लगा राजाका निर्माण करना और दण्डका विधान लागू करना आवश्यक हो गया ! कलियुगमें तो कर्तव्यपालन या कार्यपद्धतिका पालन न के समान होता है, यह समाजमें अराजकता निर्माण होनेका मुख्य कारण है !
क्या आपको पता है कि भारतमें प्रत्येक वर्ष ५ लाख मार्ग (सडक) दुर्घटनाएं (एक्सीडेंट्स) होती हैं जिससे भारतीय अर्थव्यवस्थाको ५५००० कोटि रुपएकी हानि होती है | आंकडोंके अनुसार, पिछले एक दशकके मध्य दस लाखसे अधिक भारतीय देशके मार्गपर अपने प्राण गंवा चुके हैं ! यदि आप इस विषयपर चिंतन करेंगे तो इसका मूल कारण मार्गपर चलने हेतु नियमोंका पालन नहीं करना ही है | यह तो मात्र एक उदाहरण है, समाजमें ऐसी अनेक समस्याएं इस दुर्गुणके कारण व्याप्त हैं | इसलिए यदि हम चाहते हैं कि यह देश साधना योग्य भूमि पुनः बने तो सभीको मिलकर कार्यपद्धतिका या नियमका या अपने कर्तव्यका, आप जो कह लें, उसका पालन पूर्ण निष्ठासे करना होगा ! आपसे यह कब-कब नहीं होता है, उसकी सूची बनाएं और उसका पालन आरम्भ करें या उसकी प्रवृत्ति बढायें | किसी भी संस्थानके सुचारू रूपसे चलनेके पीछेके अनेक कारणोंमें एक कारण उस संस्थानके लोगोंद्वारा अपनी कार्यपद्धतिका पालन करना होता है ! अब चाहे उस संस्थानके लोग उसे अपना कर्तव्य समझकर करें या दण्डके विधानके भयसे करें ! जब हम साधक होते हैं तो समाजका विचार करके और स्वयंप्रेरित होकर कार्यपद्धतिका पालन करते हैं और अन्यथा हमारी तमोगुणी वृत्तिको दण्डके भयसे कार्यपद्धतिका पालन करने हेतु विवश किया जाता है, जैसे विदेशोंमें होता है ! ध्यान रहे, हम जितना तमोगुणी होते हैं, हमारे भीतर कार्यपद्धति पालन न करनेकी प्रवृत्ति उतनी ही अधिक होती है; इसलिए समाजमें साधनाका संस्कार अंकित करना, यह कार्यपद्धतिका पालन करानेका सबसे सरल उपाय है ! साधक सदैव ही कर्तव्यनिष्ठ होते हैं, अनुशासित या नियमपर चलनेवाले होते हैं ! अतः आप इस मापदण्डसे भी अपने साधकत्वका प्रमाण निकाल सकते हैं ! (क्रमश: )
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