पारदर्शी होना
झूठ बोलना, अपनी चूकोंको छुपाना, झूठा दिखावा करना, अपने कार्य प्रणालीको पारदर्शी न रखना, यह सब किसी व्यक्तिके दोहरे चरित्रको दर्शाता है और ये तीव्र अहंके लक्षण हैं, जिसमें यह जितना अधिक होता है, उसमें साधकत्वका प्रमाण उतना ही कम होता है !
जब मैं कहती हूं कि वर्तमान समाजमें साधकत्व बहुत कम है तो आपको साधकके जो गुण बताए जा रहे हैं, उन मापदंडोंके आधारपर यह बताती हूं ! आज समाजके अधिकांश लोग दोहरे चरित्रवाले होते हैं । वे अपने आस-पास अच्छी छवि बनानेके प्रयासमें गुप्त रूपसे अनेक कुकर्म करते हैं या अपने अवगुणोंको छुपाते हैं !
ध्यान रहे, जो व्यक्ति जितना पारदर्शी होता है, उसका सूक्ष्म वलय भी उतना ही बडा और व्यापक होता है ! और अपारदर्शी व्यक्तिका वलय काला और संकुचित होता है; अतः अपने व्यक्तित्वको पारदर्शी बनाएं ।
कुछ माह पूर्व एक राज्यके पुलिस महानिदेशक उपासनाके आश्रममें अध्यात्म और विशेषकर सूक्ष्मसे सम्बन्धी तथ्योंको जाननेकी जिज्ञासा लेकर आए थे । उन्होंने मेरा चलभाष क्रमांक मांगा तो मैंने उन्हें आश्रमका सम्पर्क क्रमांक दे दिया । उन्होंने कहा, “ऐसा चलभाषका क्रमांक दें जो आपके किसी साधकके हाथ न लगता हो । ” मैंने कहा, “ऐसा तो कोई चलभाष हमारे पास नहीं है । भ्रमणभाष मेरी साधनामें एक प्रकारसे अडचन है; अतः मैं इसका उपयोग अत्यल्प या अति आवश्यक होनेपर ही करती हूं । ” और कोई भी एक भ्रमणभाष मैं अपने साथ जब बाहर जाती हूं तो रखती हूं; किन्तु यदि किसी साधकको कार्य हेतु उसकी आवश्यकता हो तो उसे देती भी हूं !” तो वे मुझसे कहने लगे, “यह आप ठीक नहीं करती हैं, मेरे पास अनेक सन्तों एवं मठाधीशोंके वैयक्तिक संपर्क क्रमांक हैं, सभीके पास उनका अपना भ्रमणभाष है ! आपके पास आपका वैयक्तिक भी कुछ न कुछ होना ही चाहिए । ” मैंने उनसे कहा, “उपासनाके आश्रममें रहनेवाले साधक, मेरे बच्चों समान है, एक मां अपने बच्चोंसे ही कुछ छुपाए, यह कैसे सम्भव है ? और मेरे पास कुछ वैयक्तिक है ही नहीं ! मेरा तो ‘इन्कम टैक्स’ कितना जाता है, यह भी मुझे ज्ञात नहीं होता, जब कोई पूछता है तो जो साधक इसकी सेवा करते हैं, मैं उनका संपर्क क्रमांक दे देती हूं ! जिस दिवस अपना सर्वस्व अपने श्रीगुरुको अर्पण किया, उस दिनसे एक पारदर्शी जीवन व्यतीत करना मेरी साधना है, इस सिद्धान्तके अनुसार जीवनयापन करती हूं ! अंग्रेजीमें एक कहावत है, less luggage more comfort, मैं इस सिद्धांतका पालन करती हूं ! जो भ्रमणभाष मेरे पास होते हैं, वह धर्मकार्य हेतु दानके पैसेसे ही क्रय करती हूं, ऐसेमें उसपर मात्र अपना अधिकार कैसे करूं ?, यह तो पाप होगा और मेरे पास छुपाने हेतु कुछ भी नहीं है; इसलिए मुझे कभी किसीप्रकारका भय भी नहीं होता है ! पारदर्शिता, यह साधकका गुण है, यह मैंने अपने श्रीगुरुसे सीखा है और उसे आत्मसात करनेका मेरा प्रयास सदैव ही रहता है !” यह सुनकर अधिकारी महोदयको अच्छा नहीं लगा और उन्होंने संवाद साधने न्यून कर दिए ! वस्तुत: मुझे ज्ञात था कि वे अपनी कोई वैयक्तिक समस्यापर बात करना चाहते थे; किन्तु चिकित्सालयमें जाकर वहां मात्र अपने चिकित्सकको रोग बताकर, उसका उपचार करना कैसे सम्भव होगा ? चिकित्सकके सहकर्मियोंको तो आपके रोग ज्ञात हो ही जायेंगे !
ध्यान रहे, पारदर्शी लोगोंका अहं न्यून होता है, उनकी आसक्तियां कम होती हैं, उनकी वासनाएं भी कम होती हैं और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वे ईश्वर और गुरुको अत्यधिक प्रिय होते हैं ! उनमें नैसर्गिक भोलापन होता है, जिसकारण वे सबके प्रिय होते हैं !
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