साधकके गुण (भाग-६)


सेवा करते हुए व्यष्टि साधना करना

साधक और कार्यकर्तामें एक मुख्य भेद यह होता है कि साधक अपना कार्य करते समय अपनी व्यष्टि साधनापर अवश्य ध्यान देता है, वहीं कार्यकर्ताको व्यष्टि साधनामें या तो रुचि नहीं होती है या उसे उसका महत्त्व ज्ञात नहीं होता या महत्त्व ज्ञात होनेपर भी क्रियमाणसे उसे करनेका प्रयास नहीं करता है !

    कार्यकर्ताके व्यष्टि साधना न करनेका मुख्य कारण उसमें ईश्वरप्राप्ति या आध्यात्मिक प्रगतिकी उत्कंठाका न होना होता है ! साधकद्वारा किए जानेवाले कार्यको सेवा कहते हैं और कार्यकर्ताद्वारा किए जानेवाले कार्यको सेवाकी उपमा नहीं दी जा सकती है ! सेवासे जहां ईश्वरीय कृपा होकर आध्यात्मिक प्रगति होती है, अहं न्यून होनेसे अंतर्मुखता बढती है, वहीं कार्यकर्ताद्वारा किए गए कार्यसे ईश्वरीय कृपा प्राप्त नहीं होती है और न ही आध्यात्मिक प्रगति होती है, चूंकि वह भावनावश कार्य करता है; इसलिए यदि वह निस्वार्थ भी करे तो उसे मात्र पुण्यकी प्राप्ति होती है जिसे भोगने हेतु पुनः उसे पृथ्वीपर आना पडता है और साधक सेवाके रूपमें मात्र आध्यात्मिक प्रगति हेतु सब करता है; इसलिए उसके संचितमें एकत्रित पाप-पुण्य दोनों नष्ट होते हैं और यदि वह सातत्यसे, भावसे व्यष्टि साधनाके सर्व दृष्टिकोणको आत्मसातकर सेवा करता है तो जन्म-मृत्युके चक्रसे भी छूट जाता है !

  कार्यकर्ताके कार्यका क्षेत्र बढनेपर या उसके माध्यमसे अधिक कार्य होनेपर उसके अहं बढनेकी सम्भावना बढ जाती है जो अनेक बार उसके पतनका कारण बनती है ! वहीं साधकको यह भान होता है कि गुरु या ईश्वर ही उससे कार्य करवाकर ले रहे हैं; अतः वह अपनेद्वारा होनेवाले कार्यका कर्तापन अपने ऊपर नहीं लेता है, जिस कारण उसका अहं न्यून होनेपर  वह एक दिवस सन्तपदपर विराजमान होता है ! इसलिए जब भी कोई व्यक्ति कार्य कर रहा हो तो उसने अपने भीतर साधकके गुण आत्मसात करनेका प्रयास करना चाहिए और अपने कार्यको व्यष्टि साधनाका आधार देना चाहिए जिससे वह सेवामें परिवर्तित हो जाए ! ऐसी सेवासे मन आनन्दी रहता है, किसीसे किसी भी प्रकारकी अपेक्षा नहीं होती है, पद-प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा पानेकी इच्छा नहीं होती है और ईश्वरके प्रति भावमें वृद्धि होती है । व्यष्टि साधना अन्तर्गत अखण्ड नामजप करनेका प्रयास करना, नियमित दोष एवं अहं निर्मूलन हेतु प्रयास करना तथा निस्वार्थ भावसे उत्तरोतर त्यागकी प्रक्रियामें सातत्य रखना, सेवाके मध्य जो यह सब करता है, उसे साधक कहते हैं !

एक और महत्त्वपूर्ण बातका सभी कार्यकर्ता एवं साधक ध्यान रखें कि वर्तमान कालमें हिन्दुत्वके लिए या भारत राष्ट्रके लिए कार्य करनेवाले लोगोंपर सूक्ष्म जगतकी आसुरी शक्तियोंका प्रचण्ड प्रमाणमें आक्रमण हो रहा है, ऐसेमें जो योग्य प्रकारसे व्यष्टि साधना नहीं करते हैं, उन्हें अनिष्ट शक्तियोंका इतना तीव्र कष्ट होता है कि उनकी समष्टि सेवा या कार्य बाधित हो जाती है; अतः समष्टिको व्यष्टि साधनाका जोड देना, कालकी आवश्यकता है !



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