साधना हम जितना ही अधिक निरपेक्ष एवं निर्विकल्प भावसे करते हैं, उतना ही हमें अधिक लाभ होता है | मैंने देखा है कि जैसे व्यवहारिक जगतमें जब किसीकी किसीसे अपेक्षा टूट जाती है तो उस व्यक्तिके प्रति नकारात्मकता निर्माण हो जाती है ! उसीप्रकार साधकमें भी यदि अपने गुरु या आराध्यसे बहुत अधिक अपेक्षा हो और वह अपेक्षा किसी कारणवश पूर्ण न हो तो उन्हें, अपने गुरु या आराध्यके प्रति विकल्प निर्माण होने लगता है | एक बार हमारे श्रीगुरुको उनके एक प्रवचनमें कहते हुए सुना था कि अध्यात्ममें हमें कुछ भी नहीं मिलता है वरन सब गंवाना (अर्पण करना) पडता है तो ही हमें सर्वशक्तिमान ईश्वर मिलते हैं ! जब कोई साधक साधना-पथपर अग्रसर होता है तो अनेक बार उसकी कुछ अपेक्षाएं होती हैं, इनमेंसे कुछ व्यवहारिक तो कुछ आध्यात्मिक होती है ! यदि ऐसी अपेक्षाएं पूर्ण न हो तो साधकको अपने आराध्यके प्रति विकल्प आता है ! जैसे मैं २०१७ में द्वारका गई थी, हमारे एक परिचितने हमें वहांके एक स्थानीय व्यक्तिका संपर्क सूत्र दिया था और कहा था कि वे वहां रहनेसे लेकर मंदिरमें पूजन तककी सर्व व्यवस्था करवा देंगे ! और वैसा ही हुआ, वे एक विनम्र प्रकृतिसे सज्जन व्यक्ति थे, उन्होंने हमारे लिए सभी व्यवस्था प्रेम और निरपेक्ष भावसे की | मंदिरमें जब हम पूजन हेतु जा रहे थे तो वे मंदिरके बाहर ही रुक गए, जब हम पूजन करके आये तो वे वहीं बाहर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे ! मैंने जिज्ञासावश उनसे मंदिर न आनेका कारण पूछा तो वे कहने लगे, मैंने मंदिर नहीं जानेका संकल्प लिया है, बाल्यकालसे ही उनकी बहुत सेवा की, मेरा जीवन संघर्षोंसे भरा रहा, कभी उनसे कुछ नहीं कहा, कुछ नहीं मांगा; किन्तु विवाहके चौदह वर्ष पश्चात मैं आज भी सन्तानहीन हूं इसलिए मैंने सोच लिया है अब मैं इनके मंदिर नहीं जाउंगा ! उस व्यक्तिकी बात सुनकर मैंने उन्हें अपने स्तरपर सब समझानेका प्रयास किया; किन्तु वे अपनी अपेक्षाके पूर्ण न होनेसे अपने आराध्यसे बहुत रुष्ट थे ! दर्शन इत्यादि होनेपर वे हमें अपने घर आग्रह कर ले गए | वहां उनकी पत्नीसे भेंट हुई, वे भी बहुत सात्त्विक थीं किन्तु वे श्रीकृष्णके दर्शन हेतु नियमित जाती थीं, अपेक्षा तो उन्हें भी थी; किन्तु उन्होंने संतानहीनताको अपना प्रारब्ध और उनकी इच्छा मानकर भक्ति नहीं छोडी थी ! अभी तीन माह पूर्व मुझे किसीसे ज्ञात हुआ कि उन्हें घर एक पुत्रका जन्म हुआ है | यह निश्चित ही उनकी पत्नीकी निर्विकल्प भक्तिका ही परिणाम है, ऐसा मैं कह सकती हूं ! जब हम अपेक्षारहित प्रेम और भक्ति अपने गुरु या आराध्यसे करते हैं तो हमारे लिए जो आवश्यक है वे उसे अवश्य ही पूर्ण करते हैं, हो सकता है उसे पूर्ण होनेमें थोडा समय लगे ! अतः मात्र अपेक्षाओंके न पूर्ण होनेपर अपने ऊपर विकल्पको हावी न होने दें, इससे आपका ही अमूल्य समय व्यर्थ होता है !
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