वर्तमान कालमें अनेक साधकोंको अपने आराध्य या गुरुके प्रति विकल्प आता है, और वे साधना मध्यमें ही छोड देते हैं, यह लेख श्रृंखला ऐसे साधकों या भक्तोंके लिए है, इसे वे कृपया पढें एवं चिंतन करें, मेरे विचारसे इससे अवश्य ही उन्हें लाभ होगा |


अनेक बार साधकको अपनी परिस्थिति या गुरुके आदेशके विषयमें विकल्प आता है ! जो भी साधक पूरी उत्कंठासे आध्यत्मिक प्रगति हेतु या ईश्वरप्राप्ति हेतु प्रयास आरम्भ करता है तो ईश्वरीय तत्त्व, गुरु तत्त्व या साक्षात श्रीगुरु उसकी परीक्षा लेना आरम्भ कर देते हैं | ध्यान रहे, साधनाका पथ कठोरतम पथ होता है, यहां पग-पगपर परीक्षाएं होती हैं | और मनके विरुद्ध बोला गया वचन या परिस्थितियां, ईश्वर निर्मित होती हैं; क्योंकि इससे साधककी साधनाके प्रति लगन, ईश्वर या गुरुके प्रति निष्ठाका अभिज्ञान होता है ! जो साधक ऐसे विषम स्थितिमें भी सामान्य रहते हुए निर्विकल्प भक्ति करता है वह खरा साधक कहलानेका अधिकारी होता है ! जिन साधकोंने सन्तों, गुरुओं एवं श्रेष्ठ भक्तोंके जीवन चरित्रका अभ्यास नहीं किया होता है, उन्हें ये ईश्वरीय नियोजन समझमें नहीं आता है और मनके विरुद्ध कुछ भी घटित होनेपर, वे गुरु या अपने आराध्यको दोष देने लगते हैं ! बुद्धिसे विकल्प निर्मितिकी इस बाधाको बुद्धिसे ही धर्म अध्यात्म एवं गुरुके सिखानेकी पद्धतिका अभ्यास कर दूर किया जा सकता है ! अतः जिन्हें छोटी-छोटी बातपर विकल्प आता है उन्होंने प्रत्येक दिवस श्रेष्ठ भक्तोंके या सन्तोंके चरित्रका अभ्यास करना चाहिए जिसे उन्हें ज्ञात हो कि सभी भक्तोंके जीवनमें ऐसी विषम परिस्थितियां आती ही हैं ! 



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