साधना मनानुसार नहीं, गुरुके मार्गदर्शनमें या अध्यात्मशास्त्र अनुसार करनी चाहिए !


कल ऑस्ट्रियाके ‘हरि ॐ मंदिर’के प्रवचनके पश्चात एक जिज्ञासु मिलने आया । उसको देखते ही समझमें आया कि उसकी सूर्य और चन्द्र नाडी असंतुलित है । मैंने उनसे पूछा कि क्या आप तेज तत्त्वकी साधना करते हैं तो उन्होंने कहा कि हां मैं शक्ति तत्त्वकी साधना करता हूं और आपने जैसे कहा कि मेरी इंगला और पिंगला नाडी असंतुलित है तो यह मुझे भी लगता है; क्योंकि प्राणायाम करते समय मुझे इसका भान होता है । अपने मनानुसार साधना करनेका यही परिणाम होता है ! मैंने उन्हें शक्ति तत्त्वकी साधना करने हेतु मना किया और कहा कि वे पृथ्वी तत्त्वकी साधनाकर पहले अपनी नाडियोंको सन्तुलित करें; अन्यथा उन्हें शारीरिक और मानसिक कष्ट हो सकता है ! उन्होंने माना कि उन्हें ये दोनों कष्ट है !  जैसे ‘पारासीटामोल’की गोलीसे ज्वर उतर जाता है; किन्तु यदि आयु अनुरूप उसे उचित मात्रामें नहीं लिया जाए तो उसका प्रतिकूल प्रभाव पड सकता है; उसीप्रकार मनानुसार साधनासे हमें हानि भी हो सकती है; इसलिए साधना सदैव गुरुके मार्गदर्शनमें या अध्यात्मशास्त्र अनुसार करनी चाहिए ! 



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