अनेक साधकोंके घर जब उनके सदस्योंके कष्टमें बहुत वृद्धि होने लगती है, तब उनसे वे क्या साधना करवा सकते हैं ?, यह पूछते हैं । ध्यान रहे, जैसे आग लगनेपर कुंआ नहीं खोदा जाता है, उसीप्रकार कष्टके तीव्र होनेपर साधना आरम्भ करना अत्यधिक कठिन होता है; इसलिए जब काल अनुकूल हो तभी साधना आरम्भ करें या अपने परिजनोंसे करवाएं ! जैसे कबीरदासजीने कहा है –
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ।।
अर्थात सुखमें साधना करनेसे दुःखकी तीव्रता बहुत घट जाती है और आनेवाले आपातकालमें सभीको कष्ट होगा ही, मात्र साधनाकी छतरी उस तापसे आपका रक्षण करनेका सामर्थ्य रखेगी !
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