‘सुखस्य मूल: धर्म:’ अर्थात धर्मपालनसे मनुष्यका जीवन सुखी होता है, धर्म ही अध्यात्म सिखाता है और अध्यात्मशास्त्रके माध्यमसे साधना करना सम्भव होता है । अतः सुखी जीवन व्यतीत करने हेतु साधना करें !
(हमारे श्रीगुरुके अनुसार, ईश्वरप्राप्ति हेतु तन, मन, धनसे किए जानेवाले प्रयत्नको ही साधना कहते हैं |)
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