आर्य वैदिक सनातन हिन्दू धर्मकी विशेषता (भाग – ८)


हिन्दू धर्म अवतारवादके सिद्धान्तको मानता है । गीतामें भगवान श्रीकृष्ण इस सिद्धांतकी पुष्टि करते हुए कहते हैं –
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदाऽत्मानं सृजाम्यहम् ।।
हे भरतवंशी अर्जुन, जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है तब-तब ही मैं अपने आपको साकाररूपसे प्रकट करता हूं ।
इसप्रकार समय-समयपर भगवान धर्मकी रक्षा हेतु अवतरित होकर इस स्वयंभू सनातन धर्मकी रक्षा करते हैं । वहीं अन्य पन्थोंमें पतन होनेपर उस पन्थका अस्तित्व कुछ काल उपरान्त समाप्त हो जाता है !

अन्य पन्थ मानव निर्मित होनेके कारण कुछमें तो इसकी अवधारणा है ही नहीं और कुछमें अवतारोंकी कपोलकल्पित धारणा है और वे हिन्दुओंके अनुसार अपने पन्थके कुछ उन्नतोंको अवतार मानते हैं । जबकि सत्य यह है नहीं; इसलिए अन्य पन्थोंमें तथाकथित अवतारके आनेपर भी पन्थका पतन होते हुए एक दिवस ऐसे पन्थोंका अस्तित्व समाप्त हो जाता है । कालके प्रवाहमें ऐसे कई पन्थ आए और चले गए; किन्तु अरबों वर्षोंसे सनातन धर्मका अस्तित्व ‘जसका तस’ है, यह अवतारोंके कारण ही है ।



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